लेखक की कलम से

सृजन…

जब हम जैसा सोचते हैं

वैसा सृजन कर बैठते हैं

हमारी दृष्टि ही आधार है

कौरवों के मन में राजलिप्सा थी

इसलिये महाभारत का सृजन

हुआ

पांडव अपनों के मोह में थे तो

गीता का उद्भव हुआ, तो जैसी सोच वैसी सृजन।

©सुप्रसन्ना झा, जोधपुर, राजस्थान।

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