लेखक की कलम से

नया वर्ष मुबारक हो …

 

ये जाते हुए लम्हें,

न लौट के आना फिर कभी,

न जाने क्यों रूठे हुए तुम,

सांसे थम सी गई थी ||

 

रुकसत हुए कई जहां से,

तेरी रुसवाई भी अजीब था,

निवाले छीने तूने रंक फकीर का,

राहे भी अनजान लगने लगा था ||

 

न लौट आना इस जहां में कभी,

परवरदिगार तेरे हवाले करता हूँ,

आज हौसला कायम रख सकू मैं,

तेरे नित आज ये दीदार करता हूँ ||

 

नए मंजिल की राहे गढ़ने को,

गीले शिकवे आज भुला सकूँ मैं,

नया है ये पल नए इबादत करने को,

विदा तुम्हें करता ओ बीते हुए लम्हें ||

 

रौशन कर तू ओ मेरे खुदा,

नए बरस में आज मंगल तू कर दे,

यही इबादत मैं तेरा करता हूँ,

नए विचार सदभाव जहां में भरदे ||

 

ओ बीते हुए लम्हें,

न लौट आना तुम कभी,

नए राहे चलने को पंख भी तैयार,

नया वर्ष हो मुबारक बीते न बिसार ||

 

©योगेश ध्रुव, धमतरी, छत्तीसगढ़

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