लेखक की कलम से
मुस्कुराते रहिए …
संयम समरस संगम सहस साथ जीवन का
देखकर मुस्कुरा देना हथियार जीवन का
नमी अंदर सहेज हरियाली खिलखिला उठती
सत्ताईस नक्षत्रों सा चक्र घूमा वैवाहिक जीवन का
सुनती रही गीतकार शैलेन्द्र और बोल हैं लता के
एक दिन आयी एक ऐसी ही घड़ी कुछ बता के
सच हुआ साबित फिल्मी नाम जीवन में उतर आया
सत्ताईस वर्ष पहले लग्न हुआ शैलेन्द्र और लता के!
©लता प्रासर, पटना, बिहार