लेखक की कलम से

संग चलने का वादा …

संग चलने का वादा कर क्यों बीच राह में छोड़ गए?
किसके खातिर मुंह मोड़ा क्यों दिल मेरा तोड़ गए?
तुम इतने निष्ठुर निकलोगे यह मुझको एहसास नहीं था।
तुमसे ज्यादा और किसी पर यूं मुझको विश्वास नहीं था।
बीच डगर पर छोड़ मुझे तुम अपनी वफा दिखलाए हो
छलिया बनकर चले गए
जैसे कोई सजा सुनाए हो।
बात-बात में फिक्र जता कर दिल में स्थान बनाए थे।
हाथ थाम कर आज किसी का नए डगर पर निकल गए।
विश्वास की कच्ची कली को तुमने पांव तले कुचल डाला।
मुझ पर ही इल्जाम लगाकर
रास्ता तुमने बदल डाला।।
सब की फ़िक्र तुम्हें है यह तुमने विश्वास दिलाया था
फितरत तेरी फूलों पर भंवरे जैसे मंडराएं,
बहक जाओगे यह मुझको विश्वास न था।।”

 

©अम्बिका झा, कांदिवली मुंबई महाराष्ट्र           

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