लेखक की कलम से

गुलमोहर होती धरती …

 

झुर्रियों भरा शरीर

छिलका उतरती उम्र

थामें तो थामें कैसे?

थुनी लगा दो बांस

सुरमा  नज़र करो तेज़

चिराई से पहले

गुलमोहर लगाओ- पीला उबटन

सोलह श्रृंगार

करना है धरती की शादी

 

अभी गर्भ में है बच्चे,उनकी अनुवांशिकी

झूलते गालों पर डुबता सूरज

रोज उगता है

अखबार में आंखें धंसाये लोग

खबरें बांटते चैनल भूल गये

मृत सत्य,कुएं,नदी, जल-जंतु

 

गांधी भी बेचो,अंकल चिप्स

गुंडागर्दी और झूठ

आओ  मनबढ़ होती शताब्दी झकझोरें

क्या पता अपनी जगह से हिली शताब्दी सुधर जाय

‌‌ उड़न तश्तरी देखेंगी

हल जोतते स्वर्णपुरुष

रोपनी,निरवाही गाती मिट्टी

भूख के खिलाफ़

लामबंद होंगे बीज

न ढहेगी उम्र

अशोक स्तंभ सा थूनी

 

इतिहास बांचते  गुलमोहर बुल्लेशाह मन को पढ़ेगा धरती  इबादतगाह सी

गायेगी कव्वाली

ढाई आखर प्रेम बटोरने

आयेंगी उड़न तश्तरी

उपग्रहों के गिरफ्त से बचाना प्रेम।

उम्र सा ढहता प्रेम कभी नहीं लौटता

चाहे कितनी भी ताकतवर हो पुकार।

 

©डॉ पूनम सिंह, गाजियाबाद, यूपी     

परिचय :- संभू दयाल पीजी कॉलेज गाजियाबाद में असिस्टेंट प्रोफेसर, दो पुस्तकें प्रकाशित, राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में समीक्षा व लेख, रेडियो, दूरदर्शन में उद्घोषिका का अनुभव, राष्ट्रीय स्तर में कई सम्मान प्राप्त.

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