लेखक की कलम से
ध्रुव तारा …
तेरे चेहरे की सिलवटें !
बालों की चमकती चांदी।
उम्र की ढलान पर।
फैसल की जिंदगी।
बेशक डराएं मुझे!
प्रिय प्रेम मेरा।
अजर है अमर है!
रहेगा कायम दायम
श्रद्धा इतिहास के धुंधले पन्नों पर।
यह जरूरी नहीं कि
पा जाए हर लहर किनारा!
बन जाए हर बूंद स्वाति।
मोती बनकर सजे गोरी के गले
चाहा मैंने।
बनूं ध्रुव तारा
चमकूं तेरे माथे
© मीरा हिंगोराणी, नई दिल्ली