लेखक की कलम से
दर्द….
लड़कर मैं परिस्थितियों से और भी संवर जाता हूं
जितना दर्द देता है ज़माना मैं और भी मुस्कुराता हूं
जितना हवाओं ने बुझाना चाहा मेरी लौ को यारों
मैं सूरज की मानिन्द और ज्यादा ही चमक जाता हूं
लोगों ने लाख कोशिशें की पंख कतरनें की मेरे
मगर हौसला मेरा मै आसमां तक उड़ा जाता हूं
वो मेरे नाम को दबाने में मशगुल रहे जितना
मैं उतना ही निखरा संवरा सा नज़र आता हूं
मैं बुलन्द रखता हूं इरादे अपने हर हाल में दोस्तों
तभी तो बुलन्दियों पर सदा ही झिलमिलाता हूं
मंजिल दूर हो कितनी सफर कितना हो मुश्किल
बस मुसकुरा कर मैं चलता ही चला जाता हूं ॥
©अनुपम अहलावत, सेक्टर-48 नोएडा