लेखक की कलम से

काशी के कोतवाल : काल भैरव …

बनारस शिव की नगरी है। शिव ने अपने नगर की देखभाल के लिए कालभैरव को कोतवाल नियुक्त कर रखा है। शहर की देख-रेख का जिम्मा उनका है। उनकी पहचान शिव के गण के रूप में है। एक दफ़े ब्रह्मा और विष्णु बहस-मुबाहिसा करते हुए आपस में भिड़ गए। विवाद का मुद्दा ‘परम तत्व’ की पहचान थी। सवाल था कि ‘परम तत्व कौन है ?’ निष्कर्ष वेदों के माध्यम से आया – ‘शिव’I विष्णु ने तो इसे सहर्ष मान लिया लेकिन ब्रह्मा को बात कुछ कम जमी। उनका पाँचवां मस्तक क्रोधवश प्रतिकार कर बैठा। उसने कहा, ‘रूद्र तो मेरे भाल स्थल से प्रकट हुए थे इसलिए मैंने उन्हें रूद्र कहकर पुकारा। ब्रह्मा की इस दर्पयुक्त प्रतिक्रिया से शिव नाराज़ हो गए और उनकी इसी नाराजगी ने काल भैरव को जन्म दिया। शिव ने अपने अंश से भैरव की आकृति प्रकट कर उसे कालराज का ओहदा दिया और साथ ही यह निर्दिष्ट किया कि वह बनारस पर शासन करे।

कालभैरव की विशेषता यह है कि वह शिव भक्तों के पाप का तत्क्षण भक्षण कर लेता है, दुरात्माओं का नाश करता है और विश्व का भरण करता है। अपने स्वरुप में वह साक्षात कालराज है। काशीवासियों के पाप का लेखा-जोखा उसके जिम्मे है। चित्रगुप्त का इस मामले में कोई दखल नहीं है।

इस मिथक में कालभैरव पर ब्रह्म-हत्या का सन्दर्भ भी मिलता है। शिव के द्वारा तमाम गुणों से सज्जित होने के पश्चात शिव के शरीर से जन्मी भैरवाकृति ने ब्रम्हा के उस पांचवें शीर्ष को अपने नाखून/ नखाग्र से काट लिया। इस वजह से उन्हें ब्रह्म-हत्या का दोष हो गया। हत्या लगते ही उनका रंग काला पड़ गया। इस दोष के साथ ब्रह्मा के पांचवें शीर्ष को सम्भाले उन्होंने काशी का रुख किया। हत्या उनके पीछे चली। काशी पहुँच कर कालभैरव नगर की सीमा के भीतर प्रविष्ट हो गए। हत्या वहीं सीमा पर धरती में समां गई। उसी के साथ भैरव के हाथ में थामा हुआ ब्रह्मा का शीर्ष भी हाथ से छूटकर पृथ्वी में समां गया। इस तरह काशी पहुचते ही भैरव को ब्रह्म-हत्या से मुक्ति मिल गयी।

मिथक (स्कन्द पुराण/काशी खंड/ अध्याय:30) में ये भी कहा गया है कि भैरव के सेवकों से यमराज भी भय खाते हैं। काशी में भैरव दर्शन से पापों से मुक्ति मिल जाती है। उनका समूल नाश हो जाता है।

बनारस के लोग यह मानते आए हैं कि काशी- विश्वेश्वर के इस शहर में रहने के लिए बाबा काल भैरव की इजाजत लेनी चाहिए, क्योंकि देवी विधान के अनुसार वे इस शहर के प्रशासनिक अधिकारी हैं, काशी के कोतवाल, यमराज भी उनकी मर्ज़ी के बिना काशी में प्रवेश नहीं कर सकते, शायद यही कारण है कि जो भी इस शहर में आता है, वह एक बार बाबा काल भैरव के मंदिर में शीश झुकाने जरूर जाता है।

©नीलिमा पांडेय, लखनऊ

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