लेखक की कलम से

कमज़ोरी कलंक है …

प्रताड़ना सहकर मौन रहना हिम्मत और सहनशीलता की परिभाषा है या कमज़ोरी का कलंक ? या कहीं ना कहीं रिश्ते को बचाने की जद्दोजहद।

समाज में ऐसी कई घटनाएं सामने आती है जिस पर हम मौन रहते है। कई पढ़ी लिखी स्त्रीयों को ससुराल वालों के द्वारा प्रताड़ित होते देखते है हम, और उस पर उन महिलाओं को चुप्पी साधे देखते है। पति के तीखे तेवर,बच्चों की दादागिरी और घरवालों की हुकमरान वाली गतिविधियों के आगे नतमस्तक सी स्त्रियां क्य जताना चाहती है? कि वो कितनी सहनशील और संस्कारी है।

कहीं विद्रोह करने पर पति रूठ ना जाएं, कहीं सास-ससुर घर से ना निकाल दें, कहीं बच्चें बुरा मानकर कोई गलत कदम ना उठा लें या घर में अनबन का माहौल ना बन जाए। ये सोचकर सहनशीलता की मूर्ति बनी रहने वाली औरतों को मैं कमज़ोर और कायर कहूँगी। वो अपनी बेटी के लिए कंटीली राह तैयार कर रही है।

आने वाली पीढ़ी के लिए आज़ादी के दरवाज़े बंद कर रही है। जितना आप घरवालों के लिए सोचते है उतना ही परिवार वालें आपके लिए क्यूँ नहीं सोचते ये कभी सोचा है ? एक भेड़ बकरी सी ज़िंदगी क्यूँ जीनी है। हमारा देश लोकतंत्र है यहाँ सबको अपने विचार रखने का और हक के लिए लड़ने का अधिकार है। आज 21वीं सदी में भी मर्द तो खैर अगली कई सदियों तक अपने मर्दाना अहं से बाहर निकलने के लिए तैयार नहीं होंगे। पर स्त्री ही स्त्री की दुश्मन आज भी होती है।

आज भी पढ़ी लिखी समझदार औरत भी बहू को बेटी का स्थान देने के लिए तैयार नहीं। वैसे बड़ा और आसमान सा दिल होना चाहिए, बहुत मुश्किल है अपने बेटे को बहू के साथ बांटना पर नामुमकिन नहीं सौप दो बेटे को बहू के हाथों में ज़िंदगी सरल, सहज और सुखमय बनी रहेगी। बहू एक अपने पति के सहारे सबकुछ छोड़ कर आई है, आपके बेटे और घर पर जितना आपका अधिकार है उतना ही बहू का भी है।

किसीके जिगर का टुकड़ा आपकी कुलवधू है, प्रताड़ित करना शोभा नहीं देता। और प्रताड़ित हो रही मानुनी जागो अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ उठाओ रिश्ते को बचाना सिर्फ़ आपकी ही ज़िम्मेदारी नहीं है। पूरा परिवार माला के मनके की तरह है। धागा बनों पर कमज़ोर नहीं वो मजबूत पूल बनों जिस पर चलकर ही सब आगे बढ़ पाए। पर आप नींव हो ये मत भूलो सारी मंज़िलें आप पर टिकी है आप मोहताज नहीं जरूरत है पूरे परिवार की।

प्रताड़ना की पहली पहल पर ही विद्रोह का वार करो ताकि हल्की लहरें समुन्दर का रुप ना ले सकें। विद्रोह अपनों का नहीं करना विद्रोह अन्याय का करना है। कमज़ोर बनकर अन्याय का विष पीते शिव मत बनों, कृष्ण बनों धर्म युद्ध लड़ो अधिकार पाना धर्म है। हक के लिए लड़ना पाप नहीं। अगर परिवार में आपका सम्मान नहीं तो उस खोखले रिश्तें को बचाने के लिए इतनी जद्दोजहद क्यूँ?

या तों अधिकार पाकर परिवार संग मस्त रहो या प्रताड़ना का प्रतिकार करके उस दहलीज़ को लाँघ जाओ जिसके भीतर घुटन है। मौन रहकर सहने में कोई महानता नहीं, मुखर होकर अधिकार छीनने का ज़माना है अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की हिम्मत करो सहने की आदत मत ड़ालो। अपनी आने वाली पीढ़ी को अगर आज़ादी की साँसे देना चाहते हो तो प्रताड़ना का प्रतिकार करो और कमज़ोरी के कलंक को अलविदा कहो।

 

©भावना जे. ठाकर

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