लेखक की कलम से

तुम साहित्य की बेटी …

21 मार्च ‘विश्व कविता दिवस पर विशेष

तुम हो साहित्य की बेटी !

भरा -पूरा तुम्हारा परिवार …

ना जाने कितने भाई -बहन तुम्हारे ..?

सबकी अलग , अपनी रफ़्तार ….

ना मालूम कौन प्रीतम तुम्हारा ?

ना जाने तुम्हारे शब्दकोष में

किसकी , कितनी दरकार ….

मन हो आल्हादित !

या हो ,

कभी  विद्रोही -सा  !

सबको समेटती आँचल में अपने ,

सब पर लूटाती हो तुम प्यार ….

क्या है उद्गम रूप तुम्हारा ?

भाता कैसा श्रृंगार ?

  हो तुकबंदी !

या हो मुक्तक !

करती हो सच्चे भावों को स्वीकार …

हो विहंगम !

या विदारक !

परिदृश्यों का सार …

ममत्व की धरा पर

नेह लुटाती !

करती सर्वदा ,

समानता का व्यवहार ….

ना जाने कितने ,

 अविस्मरणीय पलों को संजोती …

व्याकुल मन को देती हो क़रार !

ह्रदय के झंझावातों को भी ,

देती हो समग्र  स्नेह  दुलार ….

 हो   बंजर -सी दोपहरी !

या हो ,

रजनी निराकार !

कल्पनाओं को रंगत देकर ,

करती हो व्यथितों का मनुहार ….

हो प्रेम की बातें अनर्गल !

या हो ,

विछोह के लम्हे अपार ..

शब्दों के मनके पिरोकर ,

करती हो !

 अहसासों को तुम साकार ….

विषमताओं में भी ,

फूल खिलाती !

कराती कौतूहल के,

सागर को पार ….

शरण पाकर ,

मुग्ध  हुआ विश्व !

धन्यवाद दे रहे

आज तुम्हें !

अनगिनत रचनाकार !!

©अनु चक्रवर्ती, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

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