लेखक की कलम से

माँ का त्योहार …

 (व्यंग्य )

 

 

कल से मैं आत्मग्लानि से पीड़ित हूँ। मेरी एक मित्र बहुत बीमार हो गई। वह आई सी यू में थी और मैं दो दिन से उसके छोटे -छोटे बच्चों की देखभाल कर रही थी। इसलिए मैं अपनी माँ को मदर्स डे पर शुभकामनाएं नहीं दे पाई। मेरी आत्मग्लानि और बढ़ गई जब मैंने देखा कि फेस बुक पर लोगों ने तो स्वर्ग में भी अपनी माँ को मदर्स डे विश किया और मैं अपनी जिन्दा माँ को ! लानत है मुझ पर ! मुझे डूबने को चुल्लू भर पानी नहीं मिल रहा था जब मैं लोगों की अपनी माँ के साथ फेसबुक पर तस्वीरें देख रही थी। कहाँ -कहाँ से ढूंढ कर उन्होंने माँ की नई -पुरानी तस्वीरें पोस्ट की थीं। सही भी है। माँ को इन्ही तस्वीरों के साथ अगले मदर्स डे तक संतुष्टि करनी है।

आत्मग्लानि के इस भंवर से अभी मैं निकली नहीं थी कि मेरी एक मित्र आ गई। उन्होंने मेरी उदासी का कारण पूछा और वजह जानकर वह फूट -फूट कर रोने लगी। उनका रोना देखकर कुछ राहत मिली कि वे मेरे दुःख में दुःखी हैं। परन्तु वे इसलिए दुखी थीं कि उनके दो बेटों में से एक उन्हें मदर्स डे विश करना भूल गया। वे बताने लगी कि किस तरह उन्होंने अपने गहने बेचकर उसे विदेश भेजा। उन्हें उस बेटे से मलाल नहीं था जो आवारा है। किसी लड़की के चक्कर में हवालात की हवा खा चुका है। परन्तु उसने मदर्स डे याद रखा और उन्हें गिफ्ट लाकर दिया। इसलिए वह बेटा महान है।

मेरी आत्मग्लानि कुछ और बढ़ गई। जब मेरी चचेरी बहन ने फ़ोन कर मुझे बताया कि उसने अपनी माँ को इस मदर्स डे पर सिनेमा की टिकट भेजी। पिछले साल उनके लिए होटल में डिनर बुक करवाया था और उससे पिछले साल उनके लिए केक भेजा था। वह पिछले लगभग दस साल के अपने मदर्स डे गिफ्ट बता रही थी और मुझे लग रहा था कि मैं कितनी गवार हूँ। मैं तो बस दो तीन दिन में माँ को फ़ोन करती हूँ और दस -बारह दिन में समय निकाल कर उनसे मिल आती हूँ। होटल में डिनर बुक नहीं कराती और न ही सिनेमा की टिकट बुक कराती हूँ। क्योंकि माँ का घर में ही चलना -फिरना मुश्किल है।

मेरा बेटा बता रहा था। उसके मित्र ने मदर्स डे पर माँ का टैटू बनवाया है। यह वही बेटा है जिसने पहले गर्लफ्रेंड का टैटू बनवाया था। फिर उससे शादी की, फिर तलाक लिया और अब उसी से कोर्ट में केस चल रहा है। यह टैटू भी आजकल बहुत ज़रूरी चीज़ है। जिसने नहीं बनवाया वह बिलकुल फूहड़ इंसान है। वह इंसान ही क्या जो जीवन में दो -चार टैटू न बनवाए। एक को छोड़ कर दूसरे का टैटू। दूसरे को छोड़ कर तीसरे का टैटू। जिस बेटे के कारण माँ ने जेल की हवा खाई। आज माँ का टैटू देख कर वह धन्य हो गई। उसे अपनी कोख पर गर्व हुआ कि उसने आधुनिक श्रवणकुमार को जन्म दिया।

हमारे पड़ोस वाले घर में मदर्स डे पर कलह का यह कारण था कि बहू ने फेसबुक पर माँ को तो मदर्स डे विश कर दिया परन्तु सास को नहीं किया। बहू कितने -कितने महीने अपनी माँ से मिलने नहीं जाती। सास की सेवा में लगी रहती है क्योंकि सास बीमार है। परन्तु इससे क्या होता है। विश करना तो बनता है। सेवा अपनी जगह और मदर्स डे अपनी जगह। बोथ आर इकवली इम्पार्टेंट। इवन मदर्स डे इज़ मोर इम्पार्टेंट देन एनीथिंग एल्स।

एक माता जी का अलग ही किस्सा है। उनकी दो बहुएं हैं। दोनों ने उनको मदर्स डे विश किया। दोनों ही उनके लिए गिफ्ट लेकर आईं। मगर एक बहू का गिफ्ट दूसरी से महंगा था। अब छोटी बहू का मदर्स डे बड़ी बहू पर भारी पड़ा। छोटी बहू आठ हज़ार का सूट लाई थी। उसने टैग भी नहीं उतरा था। सासू माँ की नज़र सबसे पहले टैग पर पड़ी। बड़ी बहू का सूट महंगा नहीं था। वह तीन -चार हज़ार का रहा होगा। उसने टैग उतार कर उसकी कीमत और कम कर दी थी। मेरी समझ में नहीं आया कि ये टैग सूट के थे या मदर्स डे के।  

मेरा बेटा पढ़ाई के लिए घर से दूर है। हररोज़ मुझे फोन करता है। कई बार तो दिन में दो बार भी कर लेता है। मैंने उसे मदर्स डे के किस्से सुनाए तो कहने लगा -“माँ फोन तो रोज़ करता हूँ पर माँ के त्योहार पर विश नहीं किया मैंने आपको।”

अपने चारों ओर बढ़ती मूर्खों की संख्या के बारे

में सोच कर हम दोनों ही ज़ोर से हंस पड़े।  

©डॉ. दलजीत कौर, चंडीगढ़

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