तुम्हारा एक नज़र भर देखना …
खयालों में विराजमान करते तुम्हें सोचना ये क्रिया मेरी कोमल कल्पनाओं की गतिविधियों का सरताज है।
तुम्हारी आँखों की सुरंग के भीतर मेरी खुशियों की झील बसती है
तुम्हारा एक नज़र भर देखना मुझे मेरी सारी इन्द्रियों को गतिशील बनाते मोह जगाता है।
तुम्हारे बोल का रस विणा के सुर है या समुन्दर की लहरों का निनाद दूर से भी सुनाई दे तो धड़क में उथल-पुथल मचाते स्पंदन पिघल जाते है।
तुम्हारी हंसी में ताज का दर्शन करते मेरे नैंन खो जाते है ढूँढती हूँ तुम्हारी हर अदाओं में सौरमण्डल की झिलमिलाती लहरों का नूर।
मेरी कलम की स्याही से टपकती बूँदो से पंक्तियाँ सज कर तुम्हारे नाम के असंख्य अर्थों को परिभाषित करते बिखर जाती है।
मेरी सूखी जिंद में लहलहाती फसल सा तुम्हारा वजूद हर धूमिल शाम को दैदीप्यमान करते मेरा जीना सार्थक करता है।
मेरी नींदों में बसते हो मेरे सपनो में सजते हो मेरी साँस साँस बहते हो मेरी कल्पना की गलियों में तुम ही तुम क्यूँ रमते हो।
©भावना जे. ठाकर