लेखक की कलम से
अबोध …
कुछ हल हुए, कुछ छूट गए
जीवन के प्रश्न।
कुछ उत्तर लिखे, कुछ रह गए
अनुत्तरित।
करके अनेक प्रयत्न।
जीवन भर रहा अबोध बालक,
ना व्यावहारिक हुआ,
ना हो सका मगन।
एक जंग ही चलती रही सबसे,
न लगा सका,
मन की लगन।
मुझे मिटाने की साजिश में,
होता रहा दमन।
उसकी नज़र बनी रही मुझ पर
खड़े करता रहा रोज़
नए नए प्रश्न।
मेरी आदत जान ली उसने
नहीं बैठूंगा निष्फल।
©अर्चना त्यागी, जोधपुर