निर्वाण …
चहेरे की सिलवटों ने कहा अब थक चुका हूँ।
तुझसे मै ऐ जिंदगी कितने स्तिम और ढ़ाने है।
ताने बाने मे उलझे राज, अश्रुधारा का सैलाब
दुखो को कालिमा के बेअंत अल्फाज़ इस जह्नन
मे समाने है।
कुछ खास जज्बात मे लिपटी यादे मुहाने से उठानी है।
दर्द की उदासियाँ
मुसकुराहटो मे मिलानी है।
टूटे दिल की चुभन नम आँखों मे छुपानी है।
बचपन की सुबह, जवानी की दोपहरी से बुढापे
की शाम ने दस्तक दी है।
गुलाबी वादियों के साये से निकल गहरी शाम
मे आखिरी हिचकी यादो के क्षण क्षण बदलते मौसम
की स्मृतियों मे बितानी है।
गुमान था बहुत रूतबे का लेकिन आज रोटी का
निवाला भी तोड कर खा पाना नामुमकिन है।
ऐ खौफे ए हया मे लिपटी जिंदगी तुझसे तो
मौत की नींद ज्यादा खूबसूरत है।
तुझे पल पल टूट कर जीने से तो महबूबा
मौत को गले लगाना अच्छा है।
मौत के आने से कुछ तो कशिश होती है।
हर शख्स तारीफों का पुलिंदा बाँधने लगता है।
मेरे दुनिया से जाने के बाद मेरे लिए
सच का फरिश्ता बन कर कौन आखिरी हिचकी तक
साथ निभायेगा।
मेरी मुस्कराहटो मे मेरी आँखों की नमी पहचान लेने वाले।
तू मेरी मौत पर कैसे न अश्रु बहाये गा।
©आकांक्षा रूपा चचरा, कटक, ओडिसा