लेखक की कलम से

बढ़ती कैंसर की समस्या चिंता का विषय

कैंसर शब्द सुनते ही उन लोगों की रग-रग थर्राने लगती है जो स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हैं या उसके मामले में थोड़े बहुत भी सयाने हैं। हममें से हरेक ने कभी न कभी किसी जानकार को इस खौफनाक समझी जाने वाली बीमारी से जूझते देखा होगा और दुर्भाग्य से हममें से ज्यादातर को दुखद अनुभव भी हुआ होगा। अकसर देखा गया है कि एक तिहाई से ज्यादा कैंसर तंबाकू या उससे बने उत्पादों के सेवन की देन हैं। जबकि एक तिहाई खान-पान और रहन-सहन या दूसरे सामाजिक कारकों से जुड़े हैं। इसलिए दुनियाभर में विभिन्न भौगोलिक स्थितियों में कैंसर के स्वरूप और फैलाव में भिन्नता नजर आती है।

हम बात करें भारत की तो, भारत में कैंसर की वजह, विकासशील देशों से कुछ अलग है। इनमें गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण, कम उम्र में विवाह, बार-बार गर्भवती होना, गंदगी और सेहत को लेकर अनदेखी जैसे कारण प्रमुख हैं। यही नहीं, कैंसर से जुड़े लगभग एक-तिहाई मामले तंबाकू की वजह से तो एक तिहाई खान-पान की आदतों के कारण होते हैं। ग्लोबल इकोनॉमी की बात करें तो इसमें विकासशील देशों का पांच फीसदी हिस्सा है जबकि कैंसर के दो-तिहाई मामले इन्हीं देशों में होते हैं। इनमें से अधिकतर 80 फीसदी मामले तीसरी या चौथी स्टेज में होते हैं जबकि विकसित देशों में इसके उलट है।

बात करें हम नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2019 की तो देशभर में ओरल कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर, सर्वाइकल कैंसर के मामलों सहित सामान कैंसर के मामलों में लगभग 324 फीसद की बढ़ोतरी हुई है। एनएचपीपी के आंकड़ों के मुताबिक 1 जनवरी 2018 से लेकर 31 दिसंबर 2018 तक 6.5 फीसदी करोड़ों लोगों को ओरल कैंसर, सर्वाइकल कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर के मामले सहित सामान कैंसर की बीमारी थी। भारत की बात करें तो प्रधानमंत्री ने भले ही दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना ‘आयुष्मान भारत’ की शुरुआत की हो, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करने वाले देशों की सूची में अभी भी भारत बहुत पीछे है।

भारत स्वास्थ्य सेवासुलभ होने के मामले में भारत दुनिया के 195 देशों में 154वीं पायदान पर हैं। यहां तक कि यह बांग्लादेश, नेपाल, घाना और लाइबेरिया से भी बदतर हालत में है। भारत दुनिया के सबसे कम खर्चों में से एक देश है। देश में स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे और इस क्षेत्र में काम करने वालों की बेतहाशा कमी है। भारत के स्वास्थ्य के सेक्टर में जीडीपी के प्रतिशत के तौर पर अगर सरकारी खर्च के आंकड़े देखें जाएं, तो वहां भी हम कहीं नहीं ठहरते। भारत में 1995 में यह 4.06 फीसदी था जो 2013 में घटकर 3.97 फीसदी हुआ और 2017 में और भी घटता हुआ 1.15 फीसदी हो गया।

दूसरे देशों से अगर तुलना की जाए तो अमेरिका में यह जीडीपी का 18 फीसदी, मलयेशिया में 4.2 फीसदी, चीन में 6, थाइलैंड में 4.1 फीसदी, फिलीपींस में 4.7 फीसदी, इंडोनेशिया में 2.8, नाइजीरिया में 3.7 श्रीलंका में 3.5 और पाकिस्तान में 2.6 फीसदी है। कैंसर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत में कैंसर जैसी बीमारियों का इलाज कितना भारी है। यह बात समझने की जरूरत है कि सेहत के मामले में सेहत के मामले में आगे बढ़ने के बजाय पीछे क्यों हो रहे है। बदलती जीवन शैली डिब्बाबंद भोजन, प्रदूषित वातावरण, प्लास्टिक, नशीली पदार्थ, तंबाकू, शराब का अत्यधिक सेवन से कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। भारत में हर साल 7 लाख से ज्यादा कैंसर के मामले सामने आ रहे हैं।

भारत में कैंसर के मामलों में राज्यों की बात करें तो 2018 में गुजरात प्रथम स्थान पर है। यहां पर 72 हजार 169 मामले सामने आये हैं, कर्नाटक में 20 हजार 34 मामले आये हैं इसका दूसरा स्थान है। तेलंगाना में 13 हजार 130 मामले सामने आये हैं यहाँ तक आंध्रप्रदेश, उत्तरप्रदेश में भी कैंसर के मामले में बढ़ोतरी देखी गई है। यही पर कैंसर से कुल मौतों की बात करें तो 2018 में कैंसर के 15 लाख 86 हजार 571 मामलों में 8 लाख़ 1 हजार 374 मरीजों की मौत हो गई। कैंसर के मरीजों की दिनों दिन वृद्धि हो रही है। मौजूद वक्क्त में दिल के दौरे के बाद सबसे ज्यादा मौतें कैंसर से होती हैं। स्वास्थ मानव की मूलभूत आवश्यकताओं में शामिल है।

कैंसर से बचने के लिए हमें अधिक तलें-भुने, बार-बार गर्म किये तेल में बने और अधिक नमक में सरंक्षित भोजन नहीं खाने चाहिए। अपना वजन सामान्य रखें। नियमित व्यायाम करें। नियमित जीवन बितायें। साफ-सुथरे, प्रदूषण रहित वातावरण की रचना करने में योगदान दें। कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से बचाओ की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की ही नहीं है, इसमें राज्यों को भी सामने आने की जरूरत है, हमें अपने बजट को बढ़ाना होगा तभी स्वच्छ और स्वस्थ भारत की परिकल्पना पूर्ण होगी।

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