लेखक की कलम से

आर्थिक विकास के महानायक सुपरकंप्यूटर्स ….

कोविड-19 महामारी समूची दुनिया पर काल बनकर टूटी है। अब इसका असर विश्व की विकास यात्रा पर दिखने लगा है। उद्योगों में उत्पादन ठप है, बेरोजगारी चरम पर है, स्वास्थ्य क्षेत्र में तो त्राहिमाम मचा है और शिक्षा की गति भी मानो थम-सी गई है। इन नकारात्मक परिणामों की जद से भारत भी परे नहीं है। ऐसे में, भारत सरकार की तमाम विकास परक योजनाएँ भी खटाई में पड़ती नजर आ रही हैं। इसी कारण प्रबुद्ध लोगों का ध्यान भारत सरकार के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम ‘राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन’ की ओर अनायास ही चला जाता है क्योंकि इस मिशन के आसरे सरकार, भारत के बहुआयामी विकास का सपना देख रही है।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन वर्ष 2015 में इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा विज्ञान एवं तकनीकी विभाग ने संयुक्त रूप से लॉन्च किया था। इस मिशन की क्रियान्वयन एजेंसी के रूप में पुणे स्थित सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग (सी-डेक) एवं बेंगलुरू स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान को नामित किया गया है। इस मिशन का मूलभूत उद्देश्य 7 वर्षों (2015-2022) में 70 हजार सुपरकंप्यूटर्स का निर्माण करना तथा उन्हें देश के प्रमुख उच्च शिक्षण संस्थानों एवं शोध संस्थानों में स्थापित करना है। ताकि सुपरकंप्यूटर्स का एक ऐसा सशक्त नेटवर्क तैयार किया जा सके, जो देशभर में शोध कार्यों को बढ़ावा देने के साथ-साथ देश के समक्ष उपस्थित विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का व्यावहारिक समाधान भी प्रस्तुत कर सके। इस मिशन हेतु भारत सरकार ने 4500 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं। आईआईटी बीएचयू में स्थापित सुपरकंप्यूटर ‘परम-शिवाय’ इस मिशन के अंतर्गत निर्मित पहला सुपरकंप्यूटर है।

बहरहाल, अब सुपरकंप्यूटर के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करने से पूर्व सुपरकंप्यूटर का अर्थ व इसके इतिहास का संक्षिप्त अवलोकन कर लेना समीचीन होगा। दरअसल, सुपरकंप्यूटर एक ऐसा उच्च क्षमतायुक्त कंप्यूटर होता है, जो 1 सेकंड में ही लाखों-करोड़ों गणनाएँ करने में सक्षम होता है। दूसरे शब्दों में, बहुसंख्य सामान्य कंप्यूटरों को समानांतर क्रम में इस प्रकार संयोजित किया जाता है कि वे एक ही समय में, एक साथ कार्य कर सकें। असल में, इस व्यवस्था के परिणामस्वरूप निर्मित होने वाला वह सशक्त कंप्यूटर ही सुपरकंप्यूटर कहलाता है। वर्तमान में ‘मिहिर’ व ‘प्रत्यूष’ नामक दो सुपरकंप्यूटर्स भारत के सबसे तेज सुपरकंप्यूटर हैं। सुपरकंप्यूटर्स की क्षमता मापने की इकाई ‘फ्लोटिंग प्वाइंट ऑपरेशंस प्रति सेकंड’ (फ्लॉप्स) होती है। वर्तमान में लगभग सभी सुपरकंप्यूटर्स ‘लाइनक्स’ नामक ऑपरेटिंग सिस्टम पर कार्य करते हैं। सुपरकंप्यूटर में एक से अधिक कंट्रोल प्रोसेसिंग यूनिट्स (सीपीयू), प्रोसेसर्स तथा एकीकृत परिपथ प्रयुक्त किए जाते हैं, जो इनकी तीव्र कार्यशील को संभव बनाते हैं।

ट्रांजिस्टर्स व एकीकृत परिपथ के आविष्कार से कंप्यूटर क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। विश्व का प्रथम सुपरकंप्यूटर ‘सीडीसी-1604’ था, जिसे वर्ष 1957 में अमेरिका के ‘सेमर क्रे’ द्वारा निर्मित किया गया था। इसलिए सेमर क्रे को ‘सुपरकंप्यूटर का जनक’ कहा जाता है। उस दौर में भारत, अमेरिका से ही सुपरकंप्यूटर आयात करता था। मगर जब मई 1974 में भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया, तो अमेरिका ने भारत को किए जाने वाले सुपरकंप्यूटर्स के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। अतः भारत ने इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने हेतु वर्ष 1988 में सी-डेक नामक संस्था का गठन किया और इसे सुपरकंप्यूटर निर्माण करने की जिम्मेदारी सौंपी। इस दौरान शुरू किए गए सुपरकंप्यूटर मिशन का नेतृत्व डॉ. विजय पांडुरंग भटकर ने किया था, इसलिए इन्हें ‘भारत में सुपरकंप्यूटर्स का जनक’ कहा जाता है। अथक प्रयासों से वर्ष 1991 में भारत का पहला सुपरकंप्यूटर ‘परम-8000’ निर्मित हुआ। यह अपने समय का विश्व का दूसरा सबसे तेज सुपरकंप्यूटर था, किंतु आज भारतीय सुपरकंप्यूटर्स गति की दृष्टि से विश्व के सुपरकंप्यूटर्स की अपेक्षा काफी पीछे हैं। वर्तमान में विश्व का सबसे तेज सुपरकंप्यूटर जापान का ‘फुगाकू’ है, जो 415.5 पेटा फ्लॉप्स की गति पर कार्य करता है। वास्तव में, सुपरकंप्यूटर की तीव्र गति व सटीक गणना ही इन्हें ‘कंप्यूटिंग की दुनिया का महानायक’ बनाती है।

यदि अनुप्रयोगों के दृष्टिकोण से देखें तो सुपरकंप्यूटर बड़ी कमाल की चीज है। बैंकिंग, बीमा, उद्योग, डेटा विश्लेषण, बिग डाटा, करों का सटीक आकलन आदि क्षेत्रों में सुपरकंप्यूटर बेहद कारगर सिद्ध हो सकते हैं। इसके अलावा, गैस-तेल भंडारों की खोज, नाभिकीय रिएक्टर्स का संचालन, ऊर्जा-दक्ष वाहनों के निर्माण, मौसम व जलवायु से संबंधित सटीक भविष्यवाणी, भूकंप का विश्लेषण जैसे कार्यों को भी सुपरकंप्यूटर सहजतापूर्वक कर सकते हैं। सबसे बढ़कर, वर्तमान में उभरती तकनीकों यथा- कृत्रिम बुद्धिमत्ता, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, ब्लॉकचेन तकनीक, क्रिप्टोग्राफी के साथ-साथ अंतरिक्ष अभियानों, ब्रह्मांड के रहस्यों, जीव की उत्पत्ति आदि को समझने के लिए भी सुपरकंप्यूटर रामबाण सिद्ध हो सकते हैं। यहाँ तक कि वर्तमान के सबसे बड़े संकट ‘कोविड-19 महामारी’ की दवा-निर्माण हेतु भी वैज्ञानिकों द्वारा सुपरकंप्यूटर्स की मदद ली जा रही है। इसके अलावा शिक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा, आपदा प्रबंधन, कृषि, ब्रेन मैपिंग, जीनोम अनुक्रम, आण्विक बायोलॉजी, गणितीय मॉडल, राष्ट्रीय अवसंरचना के विकास आदि क्षेत्रों में भी सुपरकंप्यूटर मानव के सच्चे साथी सिद्ध हो सकते हैं।

इस विश्लेषण से स्पष्ट है कि सुपरकंप्यूटर्स देश के बहुआयामी विकास-रथ के कुशल सारथी बनने की क्षमता रखते हैं। ऐसे में, यह महसूस होता है कि ‘राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन’ देश की अपरिहार्य जरुरत है। इसके परिणामस्वरूप भारत के चहुँमुखी विकास का पहिया तो तेजी से घूमेगा ही, साथ ही, भारत में विश्वस्तरीय सुपरकंप्यूटर पेशेवरों का भी एक वर्ग निर्मित होगा तथा शोध कार्यों को भी गति मिलेगी। इसके अलावा, देश मे ही सुपरकंप्यूटर्स के निर्माण से इनकी कीमत भी घटेगी, जिससे एमएसएमई भी इन्हें खरीद कर अपनी उत्पादकता बढ़ा सकेंगे। इससे न सिर्फ उनका मुनाफा बढ़ेगा, बल्कि बेरोज़गारी व मँहगाई में भी कमी आएगी। अंततः सरकार की राजस्व प्राप्ति में भी वृद्धि होगी। साथ ही, भविष्य में भारत दूसरे देशों को सुपरकंप्यूटर्स बेचकर भी लाभ कमा सकेगा।

मगर सुपरकंप्यूटर्स के आधार पर देखे जा रहे इन सुनहरे सपनों को पूरा करने में कुछ बाधाएँ भी उपस्थित हैं। इनमें सर्वप्रथम तो यह कि भारत सॉफ्टवेयर निर्माण में तो आत्मनिर्भर है, परंतु सुपरकंप्यूटर्स के निर्माण के लिए आवश्यक हार्डवेयर्स की प्राप्ति हेतु भारत को भारी आयात करना पड़ता है। दूसरे, इनका रखरखाव व शीतलन का कार्य जरा जटिल है तथा ये काफी स्थान भी घेरते हैं। इसके अलावा, इस मिशन हेतु भारत सरकार द्वारा आवंटित राशि 4500 करोड़ रुपए भी काफी कम है। ध्यान दें कि भारत शोध व अनुसंधान के क्षेत्र में अपनी जीडीपी का सिर्फ 0.7% ही खर्च करता है, जो विकसित देशों की तुलना में बहुत कम है। हालाँकि सरकार ने वर्ष 2022 तक इस राशि को बढ़ाकर जीडीपी का 2% करने का लक्ष्य रखा है, मगर इसका पूर्ण होना संदिग्ध प्रतीत होता है।

       समेकित रूप में कहा जा सकता है कि सुपरकंप्यूटर्स के निर्माण में बेशक कुछ चुनौतियाँ उपस्थित हैं, किंतु ये चुनौतियाँ इतनी बड़ी भी नहीं हैं कि हमारी इच्छाशक्ति इनके आगे घुटने टेक दे। सरकार को सभी संभव विकल्पों का अनुकूलतम उपयोग करते हुए देश में सुपरकंप्यूटर्स के निर्माण को गति प्रदान करनी चाहिए तथा शोध व अनुसंधान के क्षेत्र में खर्च को भी बढ़ाना चाहिए। तभी देश के बहुआयामी विकास के साथ-साथ ‘आत्मनिर्भर भारत’ का सपना भी साकार हो सकेगा। इसके अलावा, ‘राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन’ के परिणामस्वरूप देश में डिजिटल अर्थव्यवस्था का विकास तीव्र हो सकेगा, जो अंततः भारत के वर्ष 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य प्राप्ति में भी सहायक सिद्ध होगा।

 

©द्विजेन्द्र कौशिक, इंजीनियर, दिल्ली

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