लेखक की कलम से
आज : किसान पर अपनी बात …
ग़ज़ल
वो पूरे साल खेतों में , फ़सल जो भी उगायेगा
उसी को बेचकर, गिरवी रखा घर वो छुड़ायेगा
ये पीढ़ी-दर मिला पीढ़ी ,उसे देखो विरासत में
कि सारी उम्र ही चक्कर, कचहरी के लगायेगा
हॉ’ औने-पौने दामों में ही,ग़ल्ला देके सेठों को
जवाँ बेटी,जो उसके घर में है ,उस को ब्याहेगा
तेरी उथली सियासत के,नहीं सजदे करेगा अब
तेरे इन नाज़-नख़रों को,नहीं बिलकुल उठायेगा
उसे अब आ गई हैं,सब समझ चालें हकूमत की
कोई न उँगलियों पर अब , उसे अपनी नचायेगा
सही पूछो तो ये है रीढ़,रखना बस बचा कर तुम
गई यदि टूट तो , फिर मुल्क मेरा चल न पायेगा …
©कृष्ण बक्षी