लेखक की कलम से

अब तो तन्हा ही रहना …

 

कविता

 

 

मैं अनाथ सी एक लड़की

कैसे कर पाऊं अपनी मर्जी

 

है चारों ओर अंधेरा

 अब छूटा रैन बसेरा

 

 

घनघोर घटाएं काली

बारिश है होने वाली

 

 

 न ईद है मेरी कोई

न है अब कोई दिवाली

 

मैं तन्हा अपनी बहना

न पास है कोई गहना

 

अब किसको बोलूं साथी

अब तो तन्हा ही रहना

 

चाहत को कैसे भूलूं

मैं झूला कैसे झूलू

 

मेरा दर्द अब न संभले

मैं खुशी को कैसे छुलू

 

मेरा दिल भी अब तो टूटा

अच्छा बन कर ही लूटा

 

मेरा आशियां भी छूटा

ये जीवन तो था झूठा

 

 

©खुशनुमा हयात, बुलंदशहर उत्तर प्रदेश

 

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