लेखक की कलम से
ना कोई जीता ना कोई हारा…
प्यारा बचपन कितना न्यारा
देखो इनका भाईचारा
जाति धर्म का भेद ना जाने
सब मित्रों संग समय गुजारा
संग खेलते हिन्दू, मुस्लिम
धर्म किसी का नहीं विचारा
छूम छाई में जा छिप जाते
हो मस्जिद या हो गुरूद्वारा
पल में होती मार पिटाई
छूमन्तर फिर गुस्सा सारा
सिर्फ खेलने से मतलब, ना
मतलब जीता कौन है हारा