लेखक की कलम से

नारी हूँ मैं..

शक्ति स्वरूपा नारी,

पुरुषों के जैसी नहीं मैं,

न ही बनना चाहती हूँ..

मैं हूँ उनसे बेहतर

और शक्तिशाली…

 

गर्वित हूँ मैं खुदपर…

क्यों न होऊँ..??

 

मैं तो हूँ वेदों की ज्ञाता

कहते है मुझको

देवमाता अदिति

मैं ही अपाला मैं ही घोषा

मैं ही मैत्रयी मैं ही

 

अरुंधति कहलाई

मैंने है इतिहास रचा और

गार्गी चहूँ ओर छाई

अंग्रेजो के छक्के है

 

छुड़ाकर वीर गति

मैंने है पाई मैं हूँ

शक्ति की परछाईं

रानी लक्ष्मी बाई

शिक्षा की मैंने अलख जगाई

नाम मेरा है सावित्री फुले

पुरुष… जो समझता है

खुद को बलशाली,  वो

अस्तित्व विहीन है मेरे बगैर,

 

कई रूप निभाती हूँ मैं,

कभी बेटी, कभी अर्धांगिनी,

कभी बहन, तो कभी माँ बनकर…

हर रूप में जुड़ी हूँ उनसे,

तभी कहलाती हूँ जगतजननी मैं …

 

धैर्य, विश्वास, शक्ति स्वरूपा,

प्रेम की पर्याय मैं…

नही बनना चाहती पुरुषों के जैसा,

नही करनी उनसे कोई बराबरी,

मैं थी बेहतर और रहूंगी

अनंत अनंत तक…।।

 

©नीलम यादव, शिक्षिका, लखनऊ उत्तर प्रदेश

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