लेखक की कलम से

ढूंढ लेना …

 

ढूंढ लेना तुम मुझे, मेरे खोने से पहले

खेल के इस रेल में अब समय का चक्र छूट चुका है

लुका छिपी के बीच छलिया, निगोड़ा, मुआं माधव उतर आया है

देखो……

 

फिर कातर नजरों से कात रहा है सूर्य से सूत

आज फिर दिन में रात का साया है

भेड़िये अब भौंकते हैं शेरों पर

कुत्ते ने सांप की बांबी में सिर छुपाया है

 

ध्यान रहे की अब युद्ध तीरों से नहीं लड़े जाते

ये भी की अब नाकाफ़ी है जमीं शत्रु को पाटने की ख़ातिर

आकाश – जल – पर्वत- हिम सबमें आक्रोश समाया है

 

तुम ढूढ़ लेना मुझे, मेरे खोने से पहले

और सहेज लेना गमछी के छोर में

फ़ेंक देना गमछिया किसी गुप्त गन्दी नाली में

और करना इन्तजार फिर प्रलय की शान्ति का

 

इस बार जीवन का अंकुर गन्दी नाली से फूटेगा

आदम के प्रेम और हउआ की कोख से नहीं

फिर मिट जाएंगे सभी ऊंच नीच के भेद

धर्म कर्म भी ना अपने मुंह खोलेगा

 

पर तुम ढूंढ लेना मुझे, मेरे खोने से पहले

©संजना तिवारी, दिल्ली

परिचय – एमए हिन्दी, बीएड, शिक्षिका, कथादेश, आधी आबादी, यथावत, समाज कल्याण, सब्दांकन, पुष्पवाटिका, गुंज, अटूट बंधन व अन्य रचनाएं प्रकाशित. राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेख, कविता, गीत का प्रकाशन.

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