लेखक की कलम से

इस ज़ुल्मतों के दौर में…

 

इस ज़ुल्मतों के दौर में…

रोती हैं बेटियां, घुटती हैं बेटियां,

दिन दहाड़े राहों पर,

बेखौफ घूमते हैं दरिंदे,

लूटते हैं आबरू लड़कियों की,

दिन-रात सड़कों पर रोज लुटती हैं बेटियां,

रोती है बेटियां, घुटती हैं बेटियां।

इस ज़ुल्मतों के दौर में…

रोती हैं बेटियां, घुटती है बेटियां।।

 

रोज सड़कों पर,

तेजाब से जलाई जाती हैं बेटियां,

झुलसाई जाती हैं बेटियां,

कितना दर्द सहती हैं बेटियां,

तन का दर्द तो सहती ही हैं,

उम्र भर मन का दर्द भी सहती हैं बेटियां,

पल-पल मरती हैं बेटियां,

रोती हैं बेटियां, घुटती हैं बेटियां।

इस ज़ुल्मतों के दौर में…

रोती हैं बेटियां, घुटती हैं बेटियां।।

 

विवाह के नाम पर,

शादी के हवन कुंड में,

झोंकी जाती हैं बेटियां,

दहेज के लिए रोज,

जलती हैं बेटियां, मरती हैं बेटियां।

इस ज़ुल्मतों के दौर में…

रोती हैं बेटियां, घुटती हैं बेटियां।।

 

अपने ही ससुराल में,

सासु के संसार में,

तानों की बौछार में,

घर की दीवारों से,

सिर पटक – पटक कर,

रोती हैं बेटियां, घुटती हैं बेटियां।

इस ज़ुल्मतों के दौर में…

रोती हैं बेटियां, घुटती हैं बेटियां।।

 

पिया जी के घर पर,

छोटी-छोटी बातों पर,

पिया जी के हाथों से,

रोज पिटती हैं बेटियां,

रोती हैं बेटियां, घुटती हैं बेटियां।

इस ज़ुल्मतों के दौर में…

रोती हैं बेटियां, घुटती हैं बेटियां।।

 

अपने अरमानों को,

दिल में ही घोंटकर,

अपनी इच्छा को सीने में दबा कर,

सबकी हां में हां मिलाती हैं बेटियां।

इस ज़ुल्मतों के दौर में…

रोती हैं बेटियां, घुटती हैं बेटियां।।

 

बेटा तो दीपक है कुल का,

माता-पिता, बहन का रक्षक है,

एक ही कुल की शान बढ़ाता,

मान बढ़ाता, लाज निभाता है,

पर दो – दो कुल की लाज,

निभाती हैं बेटियां,

रोती हैं बेटियां, घुटती हैं बेटियां।

इस ज़ुल्मतों के दौर में…

रोती हैं बेटियां, घुटती हैं बेटियां।।

 

©लक्ष्मी कल्याण डमाना, नई दिल्ली

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