लेखक की कलम से

मांगो, जीवन जीने की कला …

क्या स्त्रियों को मर जाना चाहिए या जिन्दा रहना चाहिए, इस पुरुषात्तमक घेरे के बीच में से ?

जो विकलांग मानसिकता के लंगड़े पैर के बल खड़े खेल रहे हैं, स्त्रियों की आबरू और जीवन से …

हर वो स्त्री जो पति और समाज के उस घिनौने खेल की शिकार हो रही है, जो चाह कर भी उस घेरे से बाहर नहीं निकल पा रही है !

मरना आसान सुझाव समझ के अपने गले बांध लेती है स्त्रियां क्यों ??

तुम्हें जीवन जीने की कला कभी आई नहीं या जीवन को क्यों रोपकर स्वस्थ और बड़ा किया जब तुम मां की गोद में खेलकर भाई से बराबर खड़े होकर मां और पिता से हक से चीजें मांग सकती हो मुझे भाई की तरह कपड़े, खिलौने और भी बहुत कुछ चाहिए तो अपने जीवन जीने की कला क्यों नहीं मांग सकती हो,

लेकिन उस कला में ये मत सीखना कि बेटी को ही त्याग करना है, बोलो मां भाई की तरह मुझे भी खड़ा होना है, कहीं भी मुझे भी घूमना है, कहीं भी, रोकना मत ?

बस इतना वादा जरूर करती हूं कि कभी आत्मसम्मान को गिरने नहीं दू़ंगी आपके, और अपने।

क्योंकि की वो मेरा, मेरे लिए भी पहले दर्जे पर होगा।

तुम्हारी शादी इसलिए नहीं की जाती है लड़कियों कि तुम अत्याचार सहती रहो, तुम्हारे हाड़-मांस है। फिलिंग है। उसे सजाओ बुझाओ नहीं !

मरना क्यों है, क्या तुमने ही मरने का ठेका ले रखा है।

अत्याचार भी सहो और मरो भी, क्यों… तुम महानता की देवी बनना छोड़कर एक पूर्ण स्त्री बनो जो तुम्हरा हक है।

आज भी समाज में ऐसे परिवार हैं जिनके दो मुखौटे हैं।

नोंच कर फेको, दिखाओ सच को, जो सुख तुम्हारे हक का है, जब तुम भोग नहीं सकती तो सह क्यों सकती हो, क्यों सह लेती हो, दोनों हक तुम्हारे है? जब दुःख-दर्द तुम्हें दिया जाता है तो सुख को भी अपना हक बनाओ।

हिंसा नहीं होनी चाहिए …लेकिन जब तुम्हारा हक तुमसे छीना जाए तो तुम अपना हक छीनो हक से….

मत सहो अत्याचार जवाब दो लेकिन अपनी मर्यादा में! अपने पर कलंक मत लगने दो, बचाकर रखो अपना स्त्रित्व मात्रत्व, ये तुम्हारा गौरव है स्वाभिमान की पूंजी है!

स्त्री जब तुम्हारे हक से तुम्हें वंचित करे कोई तो सबसे पहले अपने बच्चे अपने हक में रखना, उन्हें कभी मत छोड़ना, तुम्हारे जीवन की सबसे सुखद पूंजी है संतान, जब तुम जन्म देने से पहले बच्चों का बोझ पेट पर रखकर नौ महीने चलती रहती हो, जीती जाती हो, हर सुख-दुःख को सहती हो, तो जन्म देने के बाद तो किनारे तक लेके जाने का हक है तुम्हारा , जब मां के साथ होंगे बच्चे तो एक दिन जरुर आएगा पुरुषात्मक हिस्से को अकेलापन महसूस करने का ये परम सत्य है हमेशा रहेगा।

 

स्त्री तुम मरो मत, जियो

जीने की सीख दो

तुम जीवन देती हो जीना भी सिखाओ

©शिखा सिंह, फर्रुखाबाद, यूपी

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