लेखक की कलम से

वो सिर्फ मेरा है उस पर है सिर्फ हक मेरा. . .

ग़ज़ल

ग़ज़ल के शौक़ को यूं दिल में पालकर रक्खा।

तेरे ख़याल को लफ़्ज़ों में ढालकर रक्खा

सुलगते वस्ल के काजल को पालकर रक्खा।

फिर उसको हिज्र की आंखों में डालकर रक्खा।

मैं जानती हूं मिरी आबरू है शीशे -सी,

इसी लिये तो हमेशा सँभाल कर रक्खा।

वो सिर्फ़ मेरा है उस पर है सिर्फ़  हक़ मेरा

फज़ूल दिल ने भरम ऐसा पालकर रक्खा।

तुम्हारे नाम के अक्षर का लेके इक लॉकेट

हमीं ने प्यार से सीने पे डालकर रक्खा।

तुम्हारा हमने किया इन्तिज़ार बरसों तक,

तुम्हारे नाम पे हर इक को टालकर रक्खा।

चिराग़ ए रूह के सूरज से रोशनी कर के

शब ए स्याह को झाँसे में डालकर रक्खा।

नज़र का जुमलों ,इशारों का ज़िक्र क्या “सीमा”,

न जाने कितनों ने दिल तक निकाल कर रक्खा।

©सीमा शर्मा, मेरठी, ग्रेटर नोयडा, दिल्ली

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