लेखक की कलम से

वाटरगेट साजिश के पांच दशक …

part-2

 

तब कार्यालय में बाब वुडवर्ड था। सक्षम संवाददाता जो रिपोर्टर बनने के पूर्व अमेरिकी नौसेना में नौ वर्ष तक सेवारत था। साथ में कार्ल बर्नस्टेइन था जो पुलिस की खबर लाता था। उस से संपादक को काफी हिचक थी क्योंकि वह दफ्तर को खर्चे का लम्बा चौड़ा बिल देता था, खूब वसूलता था। एक बार तो उसने किराये की मोटरकार ही गुमा दी और तगड़ी रकम प्रबंधन से ले ली। संपादक ने इन दोनों से वाटरगेट में गिरफ्तार सेंधमारों के बारे में जानकारी मंगाई और विस्तृत रपट भी।

दोनों द्वारा कर्मठ और प्राणपण से की गयी तफ्तीश साल भर चली। आखिर में पता चला कि शीर्ष पर राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन है जो राष्ट्रपति का चुनाव दोबारा लड़ने की तैयारी कर रहे थे। विपक्षी को बदनाम करने की मंशा से डेमेक्रेटिक पार्टी के दस्तावेज और गुप्त फैसलों की जानकारी हासिल की। बाकी रपट सब जानते ही हैं।

बस इतना और कि राष्ट्रपति निक्सन ने विशेषाधिकार के नियम की आड़ में अदालती कार्यवाही का विरोध किया। तब अमेरिका के प्रधान न्यायाधीश वोरेन ई. बर्गर ने निर्णय दिया था कि निक्सन के अक्षम्य अपराध को दंडित करना संवैधानिक मर्यादा की अनिवार्यता है। विवश होकर 8 अगस्त 1972 को शर्मसार राष्ट्रपति ने पदत्याग किया। महाभियोग से बच गये। उपराष्ट्रपति गेरार्ड फोर्ड 38वें राष्ट्रपति बने। निक्सन की यह दूसरी पराजय थी। वे 1960 में जान कैनेडी से हार चुके थे।

मगर रिचर्ड निक्सन का वह दौर ऐतिहासिक और अमेरिका के लिये बड़ा मुफीद था। माओ जेडोंग के आमंत्रण पर फरवरी 1972 में निक्सन कम्युनिस्ट चीन की यात्रा गये। तब तक सोवियत रुस से चीन किनारा कर चुका था। तभी वियतनाम की जनता अमेरिकी साम्राज्यवाद से मुक्ति के लिये संघर्ष कर रही थी। उस छोटे से स्वाभिमानी देश पर परमाणु बम गिराने का निर्णय निक्सन ने ले लिया था। रुस के जवाबी हमले से वह रुक गये। तभी भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान की मुक्ति हेतु ढाका के निकट पहुंची थी। निक्सन ने अमेरिकी बेड़े का सांतवा जंगी जहाज रवाना कर दिया। मगर उसके पहुंचने के पूर्व ही पाकिस्तानी जनरल नियाजी तथा टिक्का खान ने आत्म समर्पण कर दिया।

वाटरगेट के बारे में 8 फरवरी 1997, लगभग पच्चीस वर्षों बाद, पीटीआई ने वाशिंग्टन से मिले टेप पर आधारित एक खबर प्रकाशित की थी। इसके अनुसार निक्सन ने स्वयं अपने विपक्षी डेमोक्रेटिक प्रत्याशी एडवर्ड कैनेडी तथा एडमण्ड मस्की को बदनाम करने हेतु उस सेंधमारी का आदेश दिया था।

पांच दशक बीते। हम संवाददाता लोग ”वाशिंगटन पोस्ट” के संपादक और दोनों खोजी रिपोर्टरों पर गर्व करते हैं। पर दो प्रश्न अनुत्तरित रह गये। पहला, वाटरगेट काण्ड पर सिवाय वाशिंगटन पोस्ट के शेष समाचार—पत्र और टीवी वाले खामोश क्यों बैठ गये थे ? दूसरा प्रश्न क्या भारतीय समाचारपत्र उद्योग में ”पोस्ट” की कैथरीन ग्राहम सरीखी स्वामिनी तथा बेन ब्रेडली सदृश निडर संपादक कभी होगा जो सत्ता के शीर्ष को चुनौती दे सकें? कार्ल बर्नस्टेइन और बाब वुडवर्ड जैसे दिलदार रिपोर्टर तो कई मिल ही जायेंगे हैं।

 

©के. विक्रम राव, नई दिल्ली                  

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