लेखक की कलम से

मां …

 

मां धरती मां स्वर्ग है

मां ही है आकाश

दुख की बदरी दूर करे है

अंतस भरे उजास ।।

 

मां के चरणों में मैं देखूं

बसता चारों धाम

मुख मेरे मां बसी है

मैं रटती आठों याम ।।

 

ममता की मूरत है प्यारी

उसकी कृपा महान

बच्चों को हर पल देती

मधुरस अमृत पान ।।

 

आयी मैं इस धरा में

है उसका पुण्य प्रताप

मां की सेवा करने से ही

मिटे जाते हैं संताप ।।

 

©डॉ. सुनीता मिश्रा, बिलासपुर, छत्तीसगढ़                

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