बापू को मेरी शब्दांजलि से श्रद्धांजलि …


“देश के लिए जिसने राजयोग को छोड़ा था,
त्याग विदेशी वस्त्र खुद ही खादी बनाया था।
पाँवो में खड़ाऊं पहन जिसने सत्याग्रह का,
राग देश भर में सुनाया और सभी को जगाया था।
वो महापुरुष महात्मा गाँधी बापू कहलाया था,
जन जन में जागृति बापू ही लाया था”।
महात्मा गांधी के बारे में विख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि आने वाली पीढ़ियों को इस पर यकीन नहीं होगा कि धरती पर ऐसा भी हाड़-मांस का बना कोई आदमी कभी रहा होगा।सच भी साबित हो जाएगा अल्बर्ट का यह कहना।
गाँधी जयंती एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है जो राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि देने के लिये हर वर्ष मनाया जाता है। पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रुप में भी इसे मनाया जाता है। १५ जून २००७ को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रुप में गाँधी जयंती को घोषित किया गया है। मोहनदास करमचन्द गाँधी (२अक्टूबर १८६९ में जन्म) के जन्म दिवस को याद करने के लिये पूरे देश में गाँधी जयंती को राष्ट्रीय अवकाश के रुप में मनाया जाता है। उनके भारतीय स्वतंत्रता के लिये किये गये अहिंसा आंदोलन से आज भी देश के राजनीतिक नेताओं के साथ-साथ देशी तथा विदेशी युवा नेता भी प्रभावित होते है।गांधी जी हमेशा कहते थे कि किसी भी तरह के विरोध का मार्ग हिंसात्मक नहीं हो सकता है। अहिंसा में जो शक्ति है, उसकी जगह हिंसा कभी नहीं ले सकती है।पूरी दुनिया को सत्य और अहिंसा का रास्ता दिखाने वाले महात्मा गांधी ने देश को गुलामी की बेड़ियों से मुक्ति दिलाने में जी-जान लगा दिया। उन्होंने लोगों के बीच देशभक्ति की अलख जगाने के साथ ही, नस्लीय व जातिगत भेदभाव जैसी सामाजिक कुरीतियों पर भी हमला किया। वे हमेशा कहते थे कि किसी भी तरह के विरोध का मार्ग हिंसात्मक नहीं हो सकता है। अहिंसा में जो शक्ति है, उसकी जगह हिंसा कभी नहीं ले सकती है। इन्हीं विचारों के बूते दुनियाभर में उनकी ख्याति फैली।
१९१४ को गाँधी जी भारत वापस आये तो उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के तानाशाह को जवाब देने के लिए बिखरे समाज को एक जुट करने की सोची। इसी दौरान उन्होंने कई आंदोलन किये जिसके लिए वे कई बार जेल भी जा चुके थे। गाँधी जी ने बिहार के चम्पारण जिले में जाकर किसानो पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की। यह आंदोलन उन्होंने जमींदार और अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ी थी।गाँधी जी अहिंसा में विश्वास करते थे और समाज को भी उसी का सहारा लेने के लिए कहते थे।१अगस्त १९२० को गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की थी। गांधीजी ने इस आंदोलन के माधयम से भारत में उपनिवेशवाद को समाप्त करना चाहते थे। उन्होंने भारतीयों से यह अपील की थी कि स्कूल, कॉलेज और न्यायलय न जाये और ना कोई कर चुकाए और सम्पूर्ण रूप से इसका बहिष्कार करें। इस आंदोलन ने अंग्रेज़ों की नीव को हिलाकर रख दिया था।गाँधी जी ने नमक सत्याग्रह जैसे आंदोलन किया था। अंग्रेज़ों ने अपना आधिपत्य चाय, पोशाक और नमक जैसी वस्तुओं पर जमा रखा था। यह आंदोलन १२मार्च १९३०को अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से दांडी गाँव तक पैदल मार्च किया। बाबू जी ने नमक बनाकर अंग्रेज़ो को चुनौती दी थी।
“बापू के सपनों को फिर से सजाना है
युवा पीढ़ी में फिर से जोश जगाना है
देकर लहू का कतरा इस चमन को बचाना है
शहीदों को शहादत को कभी नही भुलाना है
बहुत गा लिए हमने आजादी के गीत सारे
अब हमें भी देशभक्ति का फर्ज निभाना है
बापू की राह चलकर अब देश बचाना है
युवा पीढ़ी में फिर से जोश जगाना है”।
©डॉ मंजु सैनी, गाज़ियाबाद