लेखक की कलम से

स्त्री सम्मान …

ना देख मेरे तू मुखड़े को,

मैं भी तो इक स्त्री हूँ,

घर में तेरी माँ बहनें जो हैं,

रुप उन्हीं का मैं भी तो हूँ।

 

कितना भरा पाप तेरे मन में,

तू खुद को मर्द कहता है,

करके मेरी इज्जत पर वार,

अपने बहन का तन ढंकता है।

 

देख तू उस नजर से मुझे,

तेरी बहन नजर आऊंगी,

माँ के रुप में जननी का,

ही रुप नजर आऊंगी।

 

भद्दे शब्दों का वार कर मुझ पर,

तू अपनी महानता बतलाता है,

उपर वाला सब कुछ देखता,

फिर क्यूँ नजरे चुराता है ??

 

मैं माँ भी हूँ, बहन भी हूँ,

हूँ मैं किसी की अर्धांगिनी,

उजड़ गयी जो इक बार मेरी दुनियाँ,

दु:ख ही दु:ख का सागर होगा,

फिर आँसुओं से सजती है दुनियाँ।

 

सोच कर तू देख जरा,

कितना सब कुछ हम सहते हैं,

माँ का घर छोड़कर

आँसुओं के दर्द में भी पलते हैं।

 

तू क्यूँ मुझे अपमानित कर,

मेरा मान घटाता है,

अपनी चुट्टी हरकत से तू,

क्यूँ मेरे सम्मान को चोट पहुँचाता है??

 

©अंशिता दुबे, लंदन

 

परिचय :- जन्म स्थान गोरखपुर, उत्तरप्रदेश, पिता अनिल दुबे, रिटायर्ड अस्सिटेंट कमिश्नर, पति राजेश त्रिपाठी, लंदन में आईटी सेल पर कार्यरत, शिक्षा बीटेक, स्नात्कोत्तर, मास्टर इन क्लीनिकल रिसर्च, क्रेंफील्ड यूनिवर्सिटी यूनाइटेड किंगडम से, चक्र हीलिंग एवं कुण्डलीनिय योगा में मास्टर डिग्री.

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