लेखक की कलम से

20 फैसला …

(लघुकथा)

प्रतिभा ने जैसे ही केपीटल बस को देखा बस धीरे हो गई। मयंक ने अपना बैग उठाया और वो उस पर बैठ गई।

आज प्रतिभा ने फैसला ले लिया था कि वह उस से शादी के लिए हाँ कह देगी। क्योंकि पिछले चार-पाँच माह में अनाथ प्रतिभा ने देखा था। मयंक बहुत ही नेक इनसान है मगर वो हमेशा खोया, खोया रहता है। लेकिन एक बात उसने नोटिस कर ली थी कि उसे देखकर, उसके चेहरे पर एक चमक सी आ जाती है।

वह एक प्राइवेट जॉब में है। एक ही बस और एक ही स्टापेज के कारण दोनों में दोस्ती हुई थी।

– तो बताईये? उसने मैसेज किया।

– जी हमें मंज़ूर है। मगर मेरी कमाई बस दस हजार है और आपकी भी इतनी ही।

इतने में सब ठीक चलेगा न … ?

बस इस बात की ही टेंशन है।

– आप, ये सब मत सोचिये।

– अरे याद आया। आप ने कहा था न… एक सर्प्राइज़ है वो तो बताईए?

– हाँ बता रहा हूँ न।

– पहले बताओ, खुश तो हो न? सोच समझ के किया है न फैसला?

– जी, तभी तो इतने दिन लग गए फैसला करने में, मुझ अनाथ को। अपना तो लेगें न आपके घर वाले बताईये… ???

– हाँ जी, सब खुश हैं। आपके फैसेले का ही इंतजार कर रहे हैं।

– अच्छा, आपने ये बात भी घर वालों को बता दी क्या कि आज आपके दिये एक माह का आखरी दिन है और आज हमको बताना ही है।

– हाँ यह भी बता दिया है।

– तो चलो, इस खुशी में पार्टी हो जाये।

– जी, जैसा आप कहें।

– लो, इस लेटर को खोल कर देखो, यही है मेरा सरप्राइज!!!

– ये क्या है?

– आप देखो तो।

– अरे, यह तो आपकी गवर्नमेंट जॉब की जॉइनिंग का लेटर है।

पहले क्यों नहीं बताया?

मैं तो बहुत खुश हूँ, मयंक जी।

– मैं भी बहुत दिनों से बताना चाहता था मगर मैं ने आपके फैसले का इंतजार करना सही समझा।

– ओह… अगर मैंने, न की होती तो क्या करते?

– तो मैं आपको कभी नहीं बताता की मुझे जॉब लग गई है।

 

©डा. ऋचा यादव, बिलासपुर, छत्तीसगढ़                   

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