लेखक की कलम से

पर्यावरण …

 

भूमि जल और वायु है,जीवन का आधार।

सोच समझ कर ही करे,इन सबसे व्यवहार ।1।

 

भूमि का श्रृंगार तुम,तरवर को लों मान।

शुद्ध करे ये वायु को,कहता सकल जहान।2।

 

वायु प्रदूषण करे,दमा श्वाश के रोग।

वृक्ष पवन को शुद्ध करे,ईश्वर का संजोग ।3।

 

आबादी के भार से,भूमि घटती रोज।

इस क्षति के उपचार की,नहीं कोई है खोज ।4।

 

भौतिकता की चाह में,धरती का उर चीर।

ट्यूबवेल नलकूप से,बहुत निकाला नीर ।5।

जंगल कटते रात दिन,छायां घटती जाय ।

बेघर जंगली जीव है ,तन को कहां छुपाय ।6।

 

जंगल जहां पर हो घने,बरसे मेघ अपार।

धन धान्य और संपदा,फैले अपरंपार ।7।

 

इन्हें  बचाकर हम सभी,पाएंगे कुछ चैन।

वरना इनके कोप से,हम होंगे बैचेन ।8।

 

एक दिवस नहीं दे सके,इन सबको सम्मान।

नित पर्यावरण दिवस हो,मन में ले ये ठान ।9।

 

मिलकर  सारे ये अलख ,हर घर दे पहुंचाय।

पर्यावरण गर शुद्ध हो,सारे धन मिल जाय ।10।

 

©रमाकांत सहल, झुंझुनूं, राजस्थान         

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