हाँ मैं बदल चुकी हूँ …..
बाज़ार लगना मुमकिन था इश्क़ का
पर मैं बच के निकल चुकी हूँ ।
हाँ, मैं बदल चुकी हूँ ।।
शायद पसंद करने लगी थी तुम्हें अब
तुम्हारे लिए हो तरल चुकी हूँ ।
हाँ, मैं बदल चुकी हूँ ।।
तुम्हारे दाव-पेच को भी इश्क़ समझ बैठी
देखो कैसे तुम पर मचल चुकी हूँ ।
हाँ, मैं बदल चुकी हूँ ।।
धीरे धीरे समझ रही थी तुम्हारी चालाकियाँ
लगता है ख़रीद अब अकल चुकी हूँ ।
हाँ, मैं बदल चुकी हूँ ।।
अतीत थे तुम , वर्तमान में खो गए कहीं
पर भविष्य मैं अपना बदल चुकी हूँ ।
हाँ, मैं बदल चुकी हूँ ।।
तुम्हें इश्क़ तो कभी हुआ ही नही मुझसे
ये जान कर भी अब संभल चुकी हूँ ।
हाँ, मैं बदल चुकी हूँ ।।
हाँ इश्क़ तुमसे अब भी है मुझको पर
अब हालात में ढल चुकी हूँ ।
हाँ, मैं बदल चुकी हूँ ।।
बयाँ ना कर पाती थी बात भी अपनी मैं
तुम पर लिख कितनी ग़ज़ल चुकी हूँ ।
हाँ, मैं बदल चुकी हूँ ।।
हाँ, मैं बदल चुकी हूँ ।।
©अंशु पाल, नई दिल्ली