लेखक की कलम से

छत्तीसगढ़ में यूरिया खाद का संकट …

 

हर साल की तरह इस साल भी छत्तीसगढ़ की सहकारी सोसाइटियों में यूरिया खाद की कमी हो गई है। गरीब किसान दो-दो दिनों तक भूखे-प्यासे लाइन में खड़े है और फिर उन्हें निराश होकर वापस होना पड़ रहा है। सरकार उन्हें आश्वासन ही दे रही है कि पर्याप्त स्टॉक है, चिंता न करे और फिजिकल डिस्टेंसिंग को बनाकर रखें। किसान अपने अनुभव से जानता है कि मात्र आश्वासन से उसे खाद नहीं मिलने वाला। और यदि वह जद्दोजहद न करें, तो धरती माता भी उसे माफ नहीं करेगी और पूरी फसल बर्बाद हो जाएगी। अपनी फसल बचाने के लिए अब उसके पास एक सप्ताह का भी समय नहीं है। इसलिए वह सड़कों पर है। प्रशासन की लाठियां भी खा रहा है और अधिकारियों की गालियां भी। यह सब इसलिए कि अपना और इस दुनिया का पेट भरने के लिए उसे धरती माता का पेट भरना है।

धान की फसल के लिए यूरिया प्रमुख खाद है। कृषि वैज्ञानिक पी एन सिंह के अनुसार एक एकड़ धान की खेती के लिए 200 किलो यूरिया खाद चाहिए। इस हिसाब से छत्तीसगढ़ को कितना खाद चाहिए?

छत्तीसगढ़ में लगभग 39 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है। तो प्रदेश को 19 लाख टन यूरिया की जरूरत होगी,  जबकि सहकारी सोसायटियों को केवल 6.3 लाख टन यूरिया उपलब्ध कराने का लक्ष्य ही राज्य सरकार ने रखा है और जुलाई अंत तक केवल 5.77 लाख टन यूरिया ही उपलब्ध कराया गया है।

इस प्रकार प्रदेश में प्रति हेक्टेयर यूरिया की उपलब्धता केवल 122 किलो और प्रति एकड़ 49 किलो ही है। बाकी 12-13 लाख टन यूरिया के लिए किसान बाजार पर निर्भर है। आप कह सकते हैं कि छत्तीसगढ़ में इतनी उन्नत खेती नहीं होती कि 19 लाख टन खाद की जरूरत पड़े। यह सही है। लेकिन क्या सरकार को उन्नत खेती की ओर नहीं बढ़ना चाहिए और इसके लिए जरूरी खाद उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी नहीं बनती?

देश मे रासायनिक खाद का पूरे वर्ष में प्रति हेक्टेयर औसत उपभोग 170 किलो है, जबकि छत्तीसगढ़ में यह मात्र 75 किलो ही है। वर्ष 2009 में यह उपभोग 95 किलो था। स्पष्ट है कि उपलब्धता घटने के साथ उपभोग भी घटा है और इसका कृषि उत्पादन और उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। आदिवासी क्षेत्रों में तो यह उपभोग महज 25 किलो प्रति हेक्टेयर ही है। क्या एक एकड़ में 10 किलो यूरिया खाद के उपयोग से धान की खेती संभव है? आदिवासी क्षेत्रों में यदि खेती इतनी पिछड़ी हुई है, तो इसका कारण उनकी आर्थिक दुरावस्था भी है। सोसाइटियों के खाद तक उनकी पहुंच तो है ही नहीं।

जुलाई अंत तक सरगुजा, सूरजपुर, बलरामपुर, कोरिया और जशपुर जिलों के लिए कुल 2400 टन यूरिया खाद सोसाइटियों को दिया गया है, जबकि पांचों जिलों का सम्मिलित कृषि रकबा 9 लाख हेक्टेयर से अधिक है। इस प्रकार प्रति हेक्टेयर 2.7 किलो या प्रति एकड़ एक किलो यूरिया खाद ही सोसाइटियों को उपलब्ध कराया गया है। अब दावा किया जा रहा है कि 18 अगस्त तक सरगुजा संभाग में 18825 टन यूरिया की आपूर्ति की जा चुकी है, लेकिन सहकारी समितियों तक यह सप्लाई नहीं हुई है! क्या यह दावा अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं लगता? जो सरकार और प्रशासन अप्रैल-जुलाई के 120 दिनों में केवल 2400 टन खाद उपलब्ध कराए, वह महज 18 दिनों में 16000 टन से अधिक यूरिया खाद का जुगाड़ करने का अखबारी दावा करें, तो वास्तविकता की छानबीन भी जरूर होनी चाहिए कि प्रशासन के इस चमत्कार को सराहा जाएं या फिर नमस्कार किया जाये!

छत्तीसगढ़ की 1333 सहकारी सोसाइटियों में सदस्यों की संख्या 14 लाख है, जिसमें से 9 लाख सदस्य ही इन सोसाइटियों से लाभ प्राप्त करते हैं। प्रदेश में 8 लाख बड़े और मध्यम किसान है, जो इन सोसाइटियों की पूरी सुविधा हड़प कर जाते हैं। इन सोसाइटियों से जुड़े 5 लाख सदस्य और इसके दायरे के बाहर के 20 लाख किसान, कुल मिलाकर 25 लाख लघु व सीमांत किसान इनके लाभों से वंचित हैं और बाजार के रहमो-करम पर निर्भर है। उनकी हैसियत इतनी नहीं है कि वे बाजार जाकर सरकारी दरों से दुगुनी-तिगुनी कीमत पर कालाबाजारी में बिक रहे खाद को खरीद सके।

भारत सरकार की वेबसाइट india.gov.in पर 45 किलो और 50 किलो यूरिया की बोरियों की कीमत क्रमशः 242 रुपये और 268 रुपये प्रदर्शित की गई है। इस कीमत पर आज छत्तीसगढ़ में न तो सोसाइटियों में और न ही बाजार में यूरिया खाद उपलब्ध है। सोसाइटियों में पिछले साल की तुलना में यूरिया खाद की कीमत बढ़ गई है – नीम कोटेड यूरिया के नाम पर और 50 किलो की जगह 40 किलो की बारी आ रही है। बाजार में यही यूरिया 700-800 रुपये में बिक रहा है।

गरीब किसानों के सामने इस सरकार ने यही रास्ता छोड़ा है कि वे खेती-किसानी छोड़ दे या फिर आत्महत्या का रास्ता अपनाएं लेकिन छत्तीसगढ़ के किसानों ने संघर्ष का रास्ता चुना है। पूरे प्रदेश में और खासकर सरगुजा संभाग में किसान सड़कों पर है।

 

    ©आलेख : संजय पराते     

(लेखक छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष हैं।)

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