लेखक की कलम से

वचने का दरिद्रता …

 

मधुर वचन शीतल लगे,

करे हृदय को शांत।

कटुक वचन है तीर सम,

मन उपजाते कलांत।।

 

मधुर वचन अनमोल है,

बोले चतुर सुजान ।

लेकिन वे नर क्या करे,

जिन्हें नहीं है ज्ञान ।।

 

बिगड़े काम संवारते,

मुख के मीठे बैन ।

जिनके कर्ण में वे पड़े,

पाते मन में चैन ।

 

पहले घट में तौलिए,

पीछे बानी बोल।

मुख से निकले बोल वे,

होंगे तब अनमोल ।।

 

वाणी से इज्जत मिले,

वाणी नाक कटाय ।

कैसे ये दोनों विमुख,

एक स्रोत से आय।।

 

मीठी वाणी औषधि,

कटु हैं विष की खान।

हो वाणी में मधुरता,

पावे जग में मान ।।

 

©रमाकांत सहल, झुंझुनूं, राजस्थान         

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