लेखक की कलम से

नेक काम कर कका …

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चल जिंनगी म कुछु, नेक काम कर कका।

मिले जिंनगी ल झन तै, हराम कर कका।।

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बड़े फजर तै उठ, घुम-घुम के खा हवा।

बिहनिया के हवा, लाख टका के दवा।।

नहा खा के, दिनभर अपन काम कर कका–

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सेहत बनाना हे त बने दुध- दही ल पियो।

सब बर बने सोच रखो, खुशी खुशी जियो।।

मंझनिया थोरिक बहुत अराम कर कका–

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सच, ईमान, धरम से, अपन बुता ल कमाव।

जतका लंबा कथरी हे, वोतके पांव लमाव।।

जिंनगी जी सादा अउ, राम राम कर कका–

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माटी के काया के, तै कुछ तो जतन कर।

सत्संग म जाके, दु घड़ी हरि भजन कर।।

सबके सुख दुख पुछ, बिश्राम कर कका—

 

©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)            

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