लेखक की कलम से

जीवन धारा …

 

ये जीवन न जाने क्यों ओर कैसे मिला

पर मेरे शरीर रूप में इसको मैंने देखा

बहुत से प्रश्न मुहँ बाए उत्तर की प्रतीक्षा में

मुझ से आस लगाये बैठे हैं

सब सुन समझ पता लगाने की कोशिश कि

क्या मेरा शरीर साकार रूप मे जीवन हैं

शरीर नश्वर हैं समय गति के साथ बदलता हैं

पर अनुभव बोला कि शरीर अलग और जीवन अलग

शरीर जीवन को चलाने का मात्र एक साधन हैं

जीवन तो अक्षुण्ण हैं शरीर क्षणिक मात्र

लगा जैसे जीवन की बहुत सी इच्छाएं,आकांक्षाए हैं

या ये सब शरीर की अभिलाषाएं मात्र हैं

ये सोचते सोचते जीवन गति से चल रहा है

शरीर तो आत्मा या कहे जीवन को चलाने के लिए

मात्र एक साधन हैं जिसको हम सब कुछ मान बैठते हैं

जीवन क्या है, क्यों हैं, कैसे है, कब हैं, कहाँ हैं..??

न जाने कितने प्रश्न मन को कचोटते हैं

हम शरीर हैं तो जीवन क्या हैं हम जीवन को कैसे लाये

शरीर के साथ जीवन सुख दुख को पार कर चलता है

अपनी गति से निर्विकार रूप में आयु बढ़ती हैं

जीवन सतत हैं सत्य हैं सुंदर हैं निरंतर हैं

शरीर मात्र साधन हैं ।

 

 

©डॉ मंजु सैनी, गाज़ियाबाद             

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