लेखक की कलम से
देखव स्कूल खुल गे …
देखव फिर से स्कूल खुलगे।
खुशी के मारे मन ह फुलगे।।
स्कूल आवत हे आरी-पारी।
बस्ता धरके सबझन संगवारी।।
लइका मन चिल्लावे घात।
आनी बानी करय गोठ बात।
स्कूल के घंटी बाजत हावय।
लइका दउडत आवत हावय।।
जन गण मन सुनावत हावय।
हाजरी सबके लगावत हावय।
गुरुजी फेर पढ़ावय पाठ।
दु दुनी चार, दु चौके आठ ।।
पर्यावरण, हिंदी, गणित।
प्रश्न पूछत हे मनगणित।।
अंगरेजी म गावय गाना।
गृहकार्य बनाके लाना।।
मंझनिया बेरा चुरगे भोजन।
लइका मन खावे होके मगन।।
शिक्षा म होवत हे नवाचार।
पढ़ई होवय अब स्कूल दुवार।।
पढ़े लिखे ले जब मिले अराम।
होवय खेलकूद अउ व्यायाम।
चार बजिस अउ होगे छुट्टी।
बन्द करव जी कलम पट्टी।।
काली फेर स्कूल आना हे ।
जिंनगी ल सुग्घर बनाना हे।।
मास्क लगा के आहू जी,
कोरोना बैरी ल भगाहू जी।।
©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)