लेखक की कलम से

अब की सीता मत बनना …

महिला दिवस पर विशेष: आज के पिता की एक पाती पुत्री के नाम …

 

 

 

ओ जनक दुलारी नंदिनी सुन ले, अबकि सीता मत बनना

तुझ संग तेरा तात (पिता) खड़ा है इतना तू मन में ही रखना

 

हिरणी सी तू, चंचल से तू, यह चंचलता मत खोना

कोहिनूर सी मुस्कान है तेरी, इस मुस्कान को मत खोना

तुझ संग तेरा तात खड़ा है….

 

बड़े नाजो से पाला तुझको, फिर क्यों तू दुत्कार तुझे

महलों की तो राजकुमारी, फिर क्यों ये वनवास तुझे

तुझ संग तेरा तात खड़ा है….

 

कौन है कैक‌ई, कौन मंथरा, जो तुझको वनवास करे

ब्याहा है तुझे त्याजा नहीं है, बस इतना तुझको भान रहे

तुझ संग तेरा तात खड़ा है…..

 

दो कुल की मर्यादा तुझसे, ऐसे दिए संस्कार तुझे

पर इन संस्कारों की आड़ में अपना, तू सम्मान मत खोना

तुझ संग तेरा तात खड़ा है….

 

चाहे कोई रावण आए, तनिक भी घबराना ना

आंखों में तेरी ज्वाला भरी है, अमृत वहीं सुखा देना या

नाभि पर बाण चला देना

तुझ संग तेरा तात खड़ा है…

 

किसने दिये अधिकार राम को, अग्नि परीक्षा लेने को

बन करके तू राम की भार्या अपनी पहचान मत खोना

तुझे संग तेरा तात खड़ा है….

 

क्यों धोबी की बात तू माने, क्या धोबी की है विसात

उंगली धरे जो चरित्र पे तेरी, याद दिला उसको औकात

तुझ संग तेरा तात खड़ा है…

रीत सदा ये चलती आई, सो दूजे घर भेजा है,

बोझ नहीं होती है बेटियां, ये किस्मत का लेखा है

तुझ संग तेरा तात खड़ा है…

 

श्रेष्ठ कृति तू ब्रह्मा जी की, नहीं दोयम दर्जा तेरा

इतनी खूबी तुझमे लाड़ो, आसपास ना कोई ठहरा

तुझ संग तेरा तात खड़ा है…

 

हे प्राण नंदिनी, प्राण बल्लभा, मेरी जनक दुलारी तू

सारी सृष्टि एक तरफ, उस सृष्टि पर भारी तू

तुझे संग तेरा तात खड़ा है…

 

कोई विपदा, ना कोई संताप, तुझ को कोई छू न सके

सारी खुशियां मिले तुझे, ऐसा तेरा तात कहे

तुझ संग तेरा तात खड़ा है….

 

भूमि से तू बेशक जन्मी, भूमि में मिलने दूंगा ना

बनी जो सीता एक भूमिजा, दूजी बनने दूंगा ना

तुझ संग तेरा तात खड़ा है…

 

ओ जनक दुलारी नंदिनी सुन ले अबकि सीता मत बनना

तुझ संग तेरा तात खड़ा है, इतना तू मन में रखना

इन्ही शुभेच्छाओं के साथ

तेरा जनक तेरा पिता तेरा तात …

 

©ऋतु गुप्ता, खुर्जा, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश            

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