लेखक की कलम से

मैं शराबी बनना चाहता हूं …

 

 

मैं शराबी बनना चाहता हूं,

अपने गम को भूलाना चाहता हूं।

मेरे दिल का दर्द खुशी हो,

दुनिया को दिखाना चाहता हूं।।

 

चाहे रोज नाले में पड़ा रहूं,

चाहे जोकर बन खड़ा रहूं।

लोग बुरा भला कहे तो क्या,

शान अपनी बताना चाहता हूं।।

 

बच्चों की पढ़ाई नहीं होती,

बीवी से अब लड़ाई नहीं होती।

मैं अपनी पैसों की पीता हूं,

लोगों को जताना चाहता हूं।।

 

बेटे की पढ़ाई छूट गई,

बेटी की सगाई टूट गई।

बीमारी से नाता जोड़ कर,

मधुशाला में बस जाना चाहता हूं।।

 

क्यों रखूंगा मैं बड़ों का मान,

नहीं सुनूंगा किसी की जुबान।

रिश्ते नाते परिवार से मुझे क्या,

मैं मनमानी करना चाहता हूं।।

©दिलकेश मधुकर, कोरबा, छत्तीसगढ़

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