लेखक की कलम से

मेरी कविताएं, मुझ-सीं …

 

मेरी कविताएं भी

होती हैं

मुझ जैसी-ही..।

कभी बहुत वाचाल

तो कभी मौन रहकर

कुछ कहती-सी ।।

 

मैं खुश होती हूं ..तो

खोल देती हैं वे भी, केसु अपने..

बिखर आते हैं जो, मुख पर मेरे।

पर छूते ही तुम्हारे

बंध जाते हैं, लजाकर..

शब्दों में पुनः।।

 

मैं होती हूं नाराज़..तो

बैठ जाती हैं वो भी.. तुनककर

नाक पर मेरी

और मनाते ही तुम्हारे

ढल जाती हैं..

अनुभूतियों में पुनः।।

 

कभी दाल में पड़े नमक-सी

हो जाती हैं ज्यादा

तो कभी फुल्के में भरी गर्म भाप-सी।

मेरी कविताएं भी हैं

मुझ जैसी ही थोड़ी बेढंगी-सी

खट्टी-मीठी-थोड़ी नमकीन-सी..।।

©सुनीता डी प्रसाद, नई दिल्ली

परिचय :- शिक्षा – एमए (हिंदी), बीएड, काव्य-संग्रह – *3 सांझा काव्य-संकलन व कई पत्रिकाओं में कविता का प्रकाशन.

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