लेखक की कलम से
कोरोना बनाम रिश्ता फजीती …
दोहे
रिस्तों को भी खा गई ,
कोरोना की मार ,,
स्वजन भी करने लगे ,
शव लेने से इनकार ,,
तार-तार सब हो गई ,
अब रिश्तों की प्रीत ,,
शव को कंधा देने में ,
रिश्ते भी भयभीत ,,
मृत्यु के बाद भी ,
कोरोना की चोट ,,
मर-घट भी लेने लगा ,
अब मुर्दों की ओट ,,
शव दाह करना यहां ,
इनका है बेकार ,,
मर-घट भी करने लगे ,
मुर्दों को इनकार ,,
लाकडाउन दुनिया हुई ,
मुर्दे भी लाचार ,,
मर-घट भी कहने लगे ,
यहां मत लाओ यार ,,
कोरोना ने कर दिया ,
मृत्यु में भी भेद ,,
मर कर भी मुर्दा कहे ,
मुझे बहुत है खेद ,,
©जाधव सिंह रघुवंशी, इंदौर