लेखक की कलम से

आशा की चिड़िया …

 

वो घर की बेटी हर घर में लहराएगी

फैला दो पंख उसके फिर देखों

वो आसमानों में भी सरगम गाएगी

 

बेटी होने से समझ के तो देखो बेटी को

वो चिड़िया इतहास भी लिख जाएगी

 

वो घर की आशा जैसे नन्ही सी चिड़िया

रूठों को भी हँसाने लगती

हर सुबह कोयल पपीहा की तरह

चंचल सुमन गीत गाने लगती

 

वो आशा की चिड़िया

उम्मीदों की दुनियाँ में कुछ करने चली

न लड़का न लड़की न भेदभाव

वो हमकदम बनकर साथ चलने लगी

 

वो घर की आन जैसे सुबह की पहली किरण

सूर्य जैसे खिलकर भेदभाव को हटाने लगी

भेदभाव की क्यों जरुरत पड़ी बेटी होने से

 

वो घर की बेटी हैं उसे पढ़ा के तो देखों

तुम्हारा सर गर्व से ऊँचा कराएगी

बेटी का साथ दे के तो देखों

वो बेटी के नाम से अहसास दिलाएगी

 

©राज श्रीवास्तव, नई दिल्ली

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