खुशियों की बुनाई ….
मेरी मां ने मेरे व्यक्तित्व को कुछ इस तरह बुना है
कभी प्यार भरी निगाहों से
तो कभी दुखती उंगलियों की आहों से
हर याद में उनका प्यार छिपा है।
जिसे कभी मुस्कुराहट से भरा था।
तो कभी नाराजगी से जड़ा था।
लेकिन अनुशासन की सलाइयां हमेशा थामी रही वो
न कभी प्यार ज्यादा होने दिया।
न कभी नाराजगी ज्यादा होने दी।
कभी कोई गांठ रह जाती मन में
तो दोबारा सब कुछ उधेड़ कर उस गांठ तक जाती
जिंदगी के कुछ नियम समझाने को
सही मात्रा में प्यार और नाराजगी मिलाने को
क्योंकि छूटी हुई गांठ अक्सर
टूटे हुए रिश्तों का कारण होती हैं
और व्यक्तित्व का विकास सम्पूर्ण नही हो पाता है।
मेरा व्यक्तित्व मेरी माँ का बुना हुआ एक स्वेटर ही तो है
उतना ही नरम, उतना ही गरम
दुनिया की सर्द नजरो से मेरी रक्षा करता हुआ
बिल्कुल मेरी जिंदगी की नाप का तैयार हुआ मेरा स्वेटर
जब तक जिया इसे साथ ले कर चला हूँ।
मैं तो माँ का अनमोल एहसास ले कर चला हूँ।
माँ के आशीर्वाद से बना , मुझे दुख की तेज हवाओ से
बचा कर , सुख की गर्माहट का सुखद अहसास दिलाता है।
©आकांक्षा रूपा चचरा, कटक, ओडिसा