लेखक की कलम से

पथगामिनी के पटल पर संपन्न हुई हिंदी भाषा की दशा एवं दिशा पर समृद्ध चर्चा …

पथगामिनी बहुत ही कम समय में साहित्य के क्षेत्र में अच्छे कार्यों हेतु अपनी एक अलग पहचान बना पाने में सफल हुई है। हिंदी साहित्य में आजकल जो छोटी-मोटी त्रुटियां हो रहीं हैं, जिस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है जैसे विषयों को लेकर विद्वानों की टोली इकट्ठा कर के ऐसे मुद्दों पर बाकायदा बहस का प्रावधान भी करती है पथगामिनी और प्रयास करती है की मंच के माध्यम से प्रकाशित रचनाएं व्याकरणिक दोष रहित हो। इन्हीं समस्याओं को देखते हुए एक नये विषय ‘हिंदी भाषा की दशा एवं दिशा सोशल मीडिया के परिप्रेक्ष्य में’ पर दिनांक १२ सितंबर को एक वार्ता रखी गई जिसमें डाॅ. नरेन्द्र प्रसाद यादव, एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी विभाग सहरसा बिहार, विजय बागरी ‘विजय’ वरिष्ठ साहित्यकार कटनी म.प्र. तथा डाॅ. सीमान्त प्रियदर्शी युवा लेखक एवं प्राध्यापक वाराणसी की गौरवमयी उपस्थिति कार्यक्रम की उपलब्धि रही।

संचालिका एवं संस्थापिका मंजुला श्रीवास्तवा जी ने बड़े ही भव्य एवं संतुलित तरीके से लोगों का अभिवादन करते हुए कार्यक्रम की शुरुआत अपनी कविता से की तत्पश्चात अतिथि वक्ता डाॅ. सीमान्त प्रियदर्शी जी ने भाषा जो वाच्य परंपरा से होते हुए तमाम रास्ते तय करते हुए आज तक के जगह पर पहुँची है और बड़ी ही मजबूत स्थिति में है जैसे पक्षों पर अपनी बात रखी उन्होंने कहा आज अनगिनत माध्यम है भाषा के विकास हेतु। आज हिंदी अपनी एक अलग उपस्थित दर्ज करने में सफल हुई है।

हिंदी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत ही सक्रिय हुई है। कई विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी बाकायदा पढ़ायी जा रही है। भारत के अहिंदी भाषी लोग भी हिंदी से जुड़ रहे हैं जो पिछले कई वर्षों से रहा है यह भी हिंदी के लिए बहुत ही अच्छी बात है। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि आज हिंदी उत्सव का समय है दूसरे राज्यों से आई हिंदी संबंधित भाषा में व्याकरण की त्रुटियां हो सकती है। सोशल मीडिया पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए।

वहीं अपने अतिथि वक्तव्य में डाॅ. नरेन्द्र प्रसाद यादव जी परिवर्तन को स्वीकार करने की बात करते हुए सचेत रहने की आवश्यकता पर बल देने की बात करते हैं आपके वक्तव्य बहुत ही सधे हुए से लगे। कटनी म.प्र से विजय बागरी ‘विजय’ जी बड़े ही विवेचनात्मक तरीके से अपनी बात रखते हुए कहते हैं कि वर्तमान में अपने भावों को लोगों तक पहुँचाने में सोशल मीडिया की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है।

सोशल मीडिया एक विशाल नेटवर्क है जो पूरे विश्व को एक परिवार के रूप में जोड़ता है। हिंदी में आजकल एक ही शब्द कई तरीके से लिखा जा रहा है, ऐसा क्यों? क्या ये हमारी कमीं नहीं है? जैसे कुछ बातों पर बागरी जी व्यथित दिखे।

अंत में बेहतरीन प्रस्तुति हेतु सभी को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार विजय तिवारी’ किसलय’ जी ने भाषा में विशेषतः मात्राओं में हो रहे गिरावट को लेकर खेद प्रकट किये। कार्यक्रम का समापन आदरणीया मंजुला श्रीवास्तवा जी ने किया।

पंकज तिवारी

सलाहकार संपादक,

पथगामिनी गाजियाबाद

Back to top button