लेखक की कलम से

समझ ना पायी …

 

कौन है अपना

कौन पराया

समझ ना पायी

पल पल धोखा खाया मैंने

फिर भी किसी को छोड़ ना पायी…

 

पता होता है दुख ही मिलना है

फिर भी ना जाने

दिल मेरा क्यूँ

तड़पता रहता है

सबको अपना मान कर

 

ऐसे ऐसे लोगों ने भी दर्द दिया हैं मुझे

जिनका मैंने कभी बुरा ना चाहा

सभझ न पायी ऐसा क्यों हो रहा है…

 

अकेली बैठ कर बार बार

हिसाब करती रहती हूँ मैं

पर समझ ना आया

क्या भूल हुआ है मुझसे

कि अपनों की भी  मैं

अपना बन न पायी…

 

©मनीषा कर बागची                           

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