लेखक की कलम से
ये भागीरथी है ….
निकल स्वर्ग से ये चली आ रही है
ये भागीरथी है बही जा रही है
जटा से लिपटकर मिली शंभु से जब
उन्हीं की शरण में झुकी जा रही है
पतित पावनी नाम पावन है इसका
जगत को भी पावन करी जा रही है
ये धरती पे अमृत कि धारा है समझो
सभी कष्ट जग का हरी जा रही है
सभी पापियों का ये धोती है पातक
कथाओं में महिमा कही जा रही है
क्षुधा और तृष्णा मिटाती है सबकी
कहां से कहां तक बढी जा रही है
क्षमा अन्न धन की विरासत हमारी
जगत में ये मां भी कही जा रही है
यहां मिश्र बंधू शरण में हैं आए
करुण प्रार्थना ये लिखी जा रही है
©क्षमा द्विवेदी, प्रयागराज