लेखक की कलम से
निमंत्रण…
निमंत्रण रहा
हिसाब-किताब की दुनियां से बाहर आना
जहाँ अँधेरा नहीं है
जलती हुई धूप नहीं है
जहाँ है शांति , है उजाला
है क्षमा , है प्रेम …
जहाँ हिंसा की आग किसी की आँख में नहीं जलती
कोई पक्षी अमंगल के गीत नहीं गाता !
खुशियों की सुनामी
अनाबिल आनंद धारा लाती है
पूजा पार्वण में सभी के घरों में उन्मुक्त उच्छास रहती …
चाँद की रोशनी में बह जाए नीले पहाड़
फव्वारे गाएँ लोक संगीत
नदी के मन में छलात-छल , बजे रुनु झुनू प्रीत…
मनीषा कर बागची