लेखक की कलम से

स्वागत शिशिर ऋतु …

 

 

क्या वक्त के साथ

रंग और गंध भी

बदल जाएंगे

 

खून पसीने से

सींची गई

फुलवारी

अपना दामन

समेट लेगी!

 

©लता प्रासर, पटना, बिहार

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