लेखक की कलम से

सूरत-ए-हाल बदलनी चाहिए…

 

साल बदलने से कुछ नहीं होता,

सूरत-ए-हाल बदलनी चाहिए।

चित्र बदलने से कुछ नहीं होता,

चरित्र व चाल बदलनी चाहिए।।

 

अमीर जीता है अपनी अमीरी में,

गरीब जीता है गरीबी में।

राजा तो मौज में रहता है,

फकीर जीता है यूँ ही फकीरी में।।

कैलेंडर बदलने से कुछ नहीं होता,

तारीखे हाल बदलनी चाहिए–

 

मन्दिर में ईश्वर, और मस्जिद में अल्लाह,

कभी बदलते नहीं।

ईद हो या दीवाली,क्रिसमस हो या रमजान,

रस्में बदलते नहीं।।

दुआएं जिनके लिए भी हो ,

बस पूजा की थाल बदलनी चाहिए—

 

बेटी की विदाई हो या,अपनों की जुदाई,

दर्द एक सा होता है।

यहाँ कोई रोते हुए हँसता हैं,

तो कोई ,हँस- हँस कर रोता है ।।

आँसू चाहे जिनका भी गिरे,

बस इक रुमाल बदलनी चाहिए—-

 

पतझड़, सावन ,बसंत बहार,

इनको हमेशा आनी जानी है।

इस जहां में ,हर इंसान की ,

अपनी-अपनी कथा- कहानी है।।

जीवन में उत्तर जो भी मिले,

बस हर दफ़े सवाल बदलनी चाहिए—

 

©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)

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