लेखक की कलम से

मेरा ख्वाब …

दोहरा नहीं पाई कभी

बिना सोचे समझे

रटेरटाए मंत्रों को  …

उपवास रखे तो

मगर श्रद्धा से झुका

नहीं सकीं सर

 

थककर तो कभी ऊबकर

मन टिकाया तो उसने

पहाड़ों से बातें करते

आकाश पर न्यौछावर होती

हवाओं में पनाह ली

 

यही करना आता है

कभी नदी संग बहना

कभी पंछियों संग दूर

उड़ जाना…..

कभी बादलों में झांकती हूँ

तो कभी बादलों से झांकती हूँ

 

आँखें मीचकर

तो कभी आंखें खोलकर

अधूरेपन को पूरा

करती हूँ..,

 

©सीमा गुप्ता, पंचकूला, हरियाणा

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