लेखक की कलम से
“सच और झूठ”…
सच बड़ा ही बदतमीज़
और झूठ तमीज़दार है
सच बड़ा ही कड़वा और
झूठ में मिठास है
सच के बड़े ही लफड़े हैं
झूठ आरामगाह है
सच और गुलाब घिरे कांटों से
झूठ की मौज बहार है
सच बर्दाश्त नहीं होता
झूठ में जीता संसार है
सच इक चुभती रस्सी है
तो झूठ फूलों का हार है
सच का कोई दीन ना ईमान
झूठ में सब विद्यमान है
सच रहता है सदा अकेला
झूठ में ट्रैफिक जाम है
सच कईयों को करता बेघर
झूठ थामता हाथ है
झूठ हैं याद रखने पड़ते
सच सदा इकसार है
सच हमेशा से रहता
झूठ का तलबगार है
सच में कोई संग नहीं
झूठ में सब संग साथ हैं
झूठ की बेवजह दलील
सच सदा ख़ुद का वकील
सच ने सब को दिया है धोखा
झूठ ने थामा हाथ है
जीना सिर उठा कर है तो
सच के सदा ही साथ रहो
झूठ की उम्र ना होती लंबी
सच सृष्टि के साथ है।
डॉ. प्रज्ञा शारदा, चंडीगढ़।